पितृपक्ष में गणपति का विसर्जन समाज के हानिकारक-संतों ने अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणपति की प्रतिमाओं का विसर्जन करने की अपील
ब्यूरो रिपोर्ट
गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में दिये गये निर्देशों के अनुसार किया जाना चाहिये। पितृपक्ष में गणपति की प्रतिमा का विसर्जन नहीं होता। अनंत चतुर्दशी के दिन जब हवन-पूजन हो जाता है तो उसके ठीक बाद प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाना चाहिये। बाद में विसर्जन से अनिष्ट की आशंका होती है। विसर्जन जुलूस में भी सादगी और गरिमा होनी चाहिये ताकि यह पता चल सके कि हम अपने अराध्य को विसर्जन के लिये ले जा रहे हैं।
ये विचार आज कलेक्ट्रेट में आयोजित पत्रकार वार्ता में संतों ने व्यक्त किये। ज्ञात हो कि संत जनों और जिला प्रशासन ने गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन शास्त्र सम्मत विधि अनुसार एक ही दिन यानी अनंत चतुर्दशी पर ही करने की मुहिम शुरू की है। इसी मुहिम के अंतर्गत आज बुधवार को कलेक्टर दीपक सक्सेना की पहल पर कलेक्ट्रेट में सभी संतजनों की पत्रकारवार्ता आयोजित की गई।
पत्रकार वार्ता में महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद जी महाराज, स्वामी नरसिंहदास जी, स्वामी चैतन्यानंद जी, पंडित वासुदेव जी शास्त्री, स्वामी अशोका नंद, पंडित रोहित दुबे, स्वामी राजारामाचार्य जी, श्री मुन्ना पांडे एवं सर्वधर्म समन्वयक श्री शरद काबरा मौजूद थे। पत्रकार वार्ता में कलेक्टर श्री दीपक सक्सेना एवं अपर कलेक्टर श्री नाथूराम गौंड भी उपस्थित थे। पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुये महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानन्द गिरी जी ने कहा कि गणेश विसर्जन का विधान अनंत चतुर्दशी के दिन ही है। अनंत चतुर्दशी पर ही विसर्जन करना शास्त्र सम्मत माना गया है, इससे सुख समृद्धि आती है। इसके बाद किसी और दिन विसर्जन करने से अनिष्ट की आशंका होती है। उन्होंने आम जनता और गणेश उत्सव समितियों से भी आग्रह है की वे एक ही दिन प्रतिमाओं का विसर्जन करें।
अध्यक्ष नगर पंडित सभा आचार्य पं. वासुदेव शास्त्री ने कहा कि 17 सितम्बर को अनंत चतुर्दशी है और इसी दिन गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन होना चाहिए। उन्होंने बताया कि निर्णय सिंधु ग्रंथ में इस बात का उल्लेख है कि अनंत चतुर्दशी के दिन ही विसर्जन का प्रावधान है। भक्तिधाम ग्वारीघाट के स्वामी अशोकानंद ने अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि जो विधान है सभी को उसी के अनुसार कार्य किये जाने चाहिए।
ज्योतिष तीर्थ पं. रोहित दुबे ने कहा कि शास्त्रों के मुताबिक गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन दसवें दिन ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हवन के बाद प्रतिमा रखने का कोई औचित्य नहीं है। पितृपक्ष में विसर्जन परिवार एवं समाज के लिये हानिकारक माना जाता है। विश्व हिंदू परिषद के श्री मुन्ना पांडे ने कहा कि जब प्रतिमाओं की स्थापना एक ही दिन की जाती है तो फिर उनक विसर्जन् अलग-अलग दिन समाजहित में नहीं है।
ब्रहम्चारी स्वामी चैतन्यानन्द ने कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा शास्त्र सम्मत विधि से गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन के की गई पहल को सार्थक बताते हुये कहा कि दसवें दिन ही विसर्जन होना चाहिए। डॉ स्वामी नरसिंहदास ने पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुये कहा कि नियमों से पूजन और विसर्जन करने पर ही हमारी पूजा सफल होगी और देवता प्रसन्न होंगे।
पत्रकार वार्ता में सभी संतों से जब पूछा गया कि गणेश प्रतिमाओं के लिए जब यह विधान है तो देवी प्रतिमाओं का विसर्जन आखिर शरद पूर्णिमा तक क्यों होता है। इस पर सभी संतों ने एक स्वर में कहा कि यही नियम देवी प्रतिमाओं के लिये भी है। जैसे ही प्रतिमाओं के समक्ष अंतिम दिन हवन किया जाता है उसके बाद विसर्जन का प्रावधान है। दशहरा पर जुलूस के बाद देवी प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया जाना चाहिए।