फायनेंस कंपनी सेवा में कमी केे लिए दोषी ठहराई गई, मृतक ऋणी के परिवार को बड़ी राहत, बीमा कंपनी अदा करेगी ऋण राशि
अधिवक्ता भरत सेन बैतूल
फायनेंस कंपनी सेवा में कमी केे लिए दोषी ठहराई गई
मृतक ऋणी के परिवार को बड़ी राहत, बीमा कंपनी अदा करेगी ऋण राशि
बैतूल। मप्र राज्य। भारत की सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन लोगो के लिए काम का हो सकता हैं जो कि बैंक या फायनेंस कंपनी से ऋण लेते हैं। फायनेंस कंपनी एवं बैंक ऋण देते समय ऋणी का समूह बीमा करवाते हैं। फायनेंस कंपनी ऋणी की मृत्यु के बाद मृतक के परिवार से ऋण वसूली प्रारंभ कर देती हैं। उपभोक्ता संरक्षण कानून एवं बीमा अधिनियम 1938 पर यह सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूण फैसला हैं जिसमें मृतक ऋणी के परिवार को बड़ी राहत दी गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 2020 (1) डीसीआर 310 में प्रकाषित हुआ हैं। मामला इस प्रकार हैं कि श्रीराम सीटी यूनियन फायनेंस लि0 से आनंद दुपारते ने 02 लाख रू0 का 27.02.2015 को व्यक्तिगत् ऋण लिया था। फायनेंस कंपनी ने सहकंपनी श्रीराम जनरल फायनेंस कंपनी से ऋण राषि की सुरक्षा हेतु समूह बीमा करवाया था। बीमा पालीसी के कवर नोट पर बीमा का पैसा प्राप्त करने वाली फायनेंस कंपनी थी। समुह बीमा पालीसी में ऋणी आनंद का नाम बीमित व्यक्तियों की सूची में सरल क्र0 263 पर दर्ज था। मृतक ने 400 रू0 डीमांड ड्राप्ट के माध्ययम से बीमा की किष्त जमा करी थी। ऋण प्राप्त करने के 18 दिन के बाद ऋणी व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
फायनेंस कंपनी ने ऋणी व्यक्ति की विधवा को ऋण राषि की मासिक किष्ते अदा करने के लिए नोटिस भेज दिया जिसका जवाब देते हुए कहा गया कि बीमा कंपनी से ऋण राषि प्राप्त करें। इस पर फायनेंस कंपनी ने 400 रू0 बीमा राषि की किष्त का डिमांड ड्राप्ट के जरिए प्राप्त होने से भी इंकार किया गया तथा आगे कहा गया कि ऋण राषि से 02,हजार 01 सौ 20 रू0 प्रोसेस फीस और स्टांप पेपर के काटे गए थें।
उपभोक्ता फोरम में ़ऋणी व्यक्ति की विधवा ने मामला दाखिल किया गया जिसमें कहा गया कि 27.02.2015 को ऋण स्वीकृत हुआ था जिसमें से बीमा की किष्त की राषि काट कर ऋण राषि प्रदान की गई थी। फायनेंस कंपनी ने अपनी ही सहयोगी बीमा कंपनी से 30.03.2015 को बीमा करवाया था। उपभोक्ता फोरम ने यह माना की फायनेंस कंपनी ने पैसा प्राप्त करने के बाद भी बीमा पालीसी हासिल करने में देरी की थी जो कि सेवा में कमी हैं। बीमा अधिनियम 1938 की धारा 64 में बीमा किष्त अदायगी दिनांक से जोखिम प्रारंभ हो जाता हैं।
उपभोक्ता आयुक्त की अदालत में फायनेंस कंपनी ने अपील दाखिल की गई जो कि खारीज कर दी गई और जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले को सही ठहराया गया। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की गई जो कि स्वीकार कर ली गई और जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता आयोग के निर्णय में निरस्त कर दिया गया। यह माना गया कि मृतक की विधवा ने बीमा की किष्त की अदायगी बाबत् विरोधाभाषी कथन किए हैं। एक तरफ तो कह रहीं है कि फायनेंस कंपनी ने बीमा राषि की अदायगी के लिए 04 सौ रू0 का डीमांड ड्राप्ट मृतक पति से प्राप्त किया था जिसका कोई साक्ष्य अभिलेख पर नहीं हैं। आगे यह माना गया कि एैसा कोई साक्ष्य नहीं हैं कि ऋण राषि से बीमा कंपनी के लिए प्रीमियम काटा गया हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मृतक ऋणी की विधवा की याचिका को स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने पाया कि राष्ट्रीय आयोग ने दो प्रमुख आधारो पर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार किया था। प्रथम आधार यह हैं कि अपीलार्थी महिला साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहीं कि फायनेंस कंपनी को बीमा की किष्त अदा की गई थी। दूसरा इस बात का कोई साक्ष्य नहीं हैं कि फायनेंस कंपनी द्वारा ऋण राषि में से बीमा की किष्त की राषि कांटी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने रिकार्ड का अवलोकन करने पर राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग का निष्कर्ष गलत माना। फायनेंस कंपनी ने पुनरीक्षण याचिका में यह तथ्य बताया हैं कि बीमा की किष्त का 400 रू0 का डिमांड ड्राप्ट प्राप्त किया गया था। बीमा कंपनी के कवर नोट पर लाभार्थी स्वयं फायनेंस कंपनी हैं। यह सेवा में कमी का मामला हैं। फायनेंस कंपनी महिला को 50 हजार रू0 शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक यातना के ऐवज में तथा 25 हजार रू0 वाद व्यय अदा करेंगी।