पंडित नित्यानंद झा: सामुदायिक निर्माण और शिक्षा के शिल्पकार : डॉ. बीरबल झा
ब्यूरो रिपोर्ट
- पंडित नित्यानंद झा: सामुदायिक निर्माण और शिक्षा के शिल्पकार : डॉ. बीरबल झा
- एक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व
6 जनवरी 2025 को पंडित नित्यानंद झा का 82वां जन्मदिन मनाया गया । उन्हें स्नेहपूर्वक ‘पढ़ुआ काका’ (विद्वान चाचा) के नाम से जाना जाता है। उनकी जीवन यात्रा साधारण पृष्ठभूमि से शुरू होकर संदीप विश्वविद्यालय के कुलपति बनने तक की एक प्रेरक कहानी है, जो शिक्षा, समर्पण और समाज सेवा के प्रति उनके अटूट संकल्प को दर्शाती है। बिहार के सिजौल गाँव से मुंबई तक फैली उनकी गतिविधियाँ यह प्रमाणित करती हैं कि इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प से कोई भी व्यक्ति बदलाव ला सकता है।
संघर्षों से तपकर बनी सफलता की कहानी
1944 में बिहार के सिजौल (तत्कालीन दरभंगा जिला) में जन्मे पंडित नित्यानंद झा का बचपन संघर्षों से भरा रहा। छठी कक्षा में ही उन्होंने अपनी माँ को खो दिया, जिससे उनके जीवन में एक गहरा शून्य उत्पन्न हुआ। लेकिन उन्होंने शिक्षा को अपनी ताकत बनाया और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी।
उनकी प्रराम्भ में आर्थिक स्थिति काफी ख़राब थी। उन्हें कभी स्कूल से मात्र एक रुपया के लिए निकाला गया, लेकिन अपनी योग्यता के दम पर उन्होंने पुनः प्रवेश प्राप्त किया। इस संघर्ष ने उनके संकल्प को और अधिक दृढ़ कर दिया। एक बार गाँव के एक व्यक्ति ने उनके परिवार की सीमित भूमि को लेकर कटाक्ष किया, जिसे उन्होंने अपनी प्रेरणा बना लिया और अपनी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊँचा उठाने का संकल्प लिया। उनके बड़े भाई, श्री सीतानंद झा, ने उनकी शिक्षा को समर्थन देकर परिवार के भविष्य को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन के वाहक
कोलकाता के सिटी कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। साथ ही , उन्होंने अंग्रेजी और बंगाली भाषा में दक्षता हासिल की। उनकी संघर्षपूर्ण यात्रा में चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने का सपना था, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें शिक्षण और उद्यमिता की ओर मोड़ दिया। कोलकाता में ट्यूशन पढ़ाने से लेकर प्रतिष्ठित शिक्षक बनने तक, उन्होंने शिक्षा को आत्मनिर्भरता का माध्यम बनाया।
धार्मिक आस्था और नैतिक नेतृत्व
भगवद गीता में उनकी गहरी आस्था और अनुशासित जीवनशैली ने उन्हें एक सुलझा हुआ व्यक्तित्व बनाया। ‘दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप अपने लिए चाहते हैं’—यह जीवन दर्शन उनके हर कार्य में परिलक्षित होता है। उनकी सहानुभूति, धैर्य और संवाद कौशल ने उन्हें एक कुशल नेता के रूप में स्थापित किया।
संदीप विश्वविद्यालय: शिक्षा सशक्तिकरण की मिसाल
उनके पुत्र, डॉ. संदीप झा, ने संदीप फाउंडेशन और संदीप विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिससे हजारों छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ हो सकी। उनके छोटे पुत्र, श्री आलोक झा, ने रियल एस्टेट क्षेत्र में सफलता पाई, जिससे पारिवारिक विरासत को और मजबूती मिली।
सामाजिक दायित्व और ग्रामीण विकास में योगदान
पंडित नित्यानंद झा ने न केवल अपने परिवार बल्कि समाज के कमजोर वर्गों—विधवाओं, अनाथों और जरूरतमंदों—के उत्थान में योगदान दिया। उनकी प्रेरणादायक चिट्ठियाँ आज भी मेरे लिए शिक्षा और आत्मनिर्भरता के प्रति उनकी गहरी आस्था की गवाह हैं।
सिजौल गाँव, जो कभी सीमित अवसरों वाला क्षेत्र था, आज बिहार के पहले निजी विश्वविद्यालय—संदीप विश्वविद्यालय—का केंद्र बन चुका है। यह उनके दृष्टिकोण और समर्पण की अमिट छाप का परिणाम है।
निष्कर्ष
पंडित नित्यानंद झा का जीवन संघर्ष, त्याग और शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति का सजीव उदाहरण है। एक नंगे पाँव स्कूल जाने वाले छात्र से लेकर एक प्रेरणास्रोत नेता तक की उनकी यात्रा यह साबित करती है कि सपने देखने और उन्हें साकार करने का साहस रखने वाले व्यक्ति समाज में बदलाव ला सकते हैं।
उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रकाशस्तंभ की तरह है, जो शिक्षा, सामाजिक सेवा और सामुदायिक निर्माण के महत्व को दर्शाती है। उनके प्रति अपार सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हुए, मैं अपने पढ़ुआ काका को नमन करता हूँ।
लेखक परिचय:डॉ. बीरबल झा एक प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार, सामाजिक उद्यमी और ब्रिटिश लिंगुआ के संस्थापक हैं।