
*लेखक: भारत सेन, अधिवक्ता, जिला न्यायालय बैतूल (आम आदमी पार्टी के बैतूल विधि सलाहकार)*
- ### AAP विधि सलाहकार ने उठाए गंभीर सवाल, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से खोला नियमों का विधिक पोल
बैतूल/भोपाल। आम आदमी पार्टी के बैतूल विधि सलाहकार एवं जिला न्यायालय बैतूल के अधिवक्ता भारत सेन ने मध्य प्रदेश खनिज नियम 2022 पर फिर से तीखा हमला बोला है। सेन का कहना है कि ये नियम केंद्र के खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 के प्रावधानों से स्पष्ट टकराव कर रहे हैं। राज्य सरकार अवैध खनन को नियंत्रित करने के बजाय राजस्व वसूली को फिरौती का जरिया बना रही है, जो नौकरशाही में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है।
सेन ने सर्वोच्च न्यायालय के कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियम केंद्रीय कानून की भावना को विफल कर रहे हैं और विधिक रूप से शून्य हैं।
### सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की स्पष्ट व्याख्या: राज्य नियमों पर करारा प्रहार
भारत सेन ने अपने ज्ञापन में सर्वोच्च न्यायालय के चार प्रमुख निर्णयों की विस्तार व्याख्या की है, जो खान एवं खनिज अधिनियम 1957 की धारा 21(5) और खनिज अपराधों के नियंत्रण पर केंद्रित हैं। इन निर्णयों से स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार राजस्व न्यायालयों को अनुचित शक्तियां देकर दांडिक प्रक्रिया को दरकिनार कर रही है:
1. *जयंत एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (2021) 2 SCC 670*
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध खनन से जुड़े मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। न्यायालय ने मध्य प्रदेश राज्य सरकार से सीधा प्रश्न किया कि *बिना दांडिक विचारण के खनिज अपराधों को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?* निर्णय में स्पष्ट है कि खनिज अपराध गंभीर प्रकृति के हैं और इनका नियंत्रण केवल राजस्व वसूली से नहीं, बल्कि दांडिक न्यायालय में पूर्ण विचारण से ही संभव है। यह निर्णय राज्य सरकार के उस दावे पर करारा प्रहार है कि राजस्व न्यायालय खनिज अपराधों का विकल्प बन सकते हैं।
2. *कर्नाटका रेयर अर्थ बनाम सीनियर जियोलॉजिस्ट, भौमिकी एवं खनिकर्म विभाग, (2004) 2 SCC 783*
सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय में धारा 21(5) की स्पष्ट व्याख्या की। न्यायालय ने कहा कि यह धारा *क्षतिपूर्ति (compensation)* की प्रकृति की है, न कि दंड (penalty) की। राजस्व न्यायालय का कार्य केवल अवैध खनन से राज्य को हुई क्षति (रॉयल्टी, टैक्स आदि) की गणना और वसूली तक सीमित है। यह दांडिक न्यायालय का विकल्प नहीं बन सकता। न्यायालय ने माना कि खनिज की कीमत की वसूली दंडात्मक नहीं हो सकती। यह निर्णय मध्य प्रदेश खनिज नियम 2022 के उन प्रावधानों को चुनौती देता है जिनमें राजस्व न्यायालय को जप्त संपत्ति के व्ययन और दोगुने-तिगुने अर्थदंड का अधिकार दिया गया है।
3. *साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लि. बनाम मध्य प्रदेश राज्य, AIR 2003 SC 4482 (2003) 8 SCC 648*
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बढ़ी हुई रॉयल्टी की वसूली और उस पर ब्याज के भुगतान पर निर्णय दिया। न्यायालय ने *restitution के सिद्धांत* (गलत आदेश से हुए नुकसान की भरपाई) पर बल दिया और कहा कि राज्य को हुई क्षति की वसूली वैधानिक होनी चाहिए। लेकिन यह वसूली दांडिक विचारण के बाद ही हो सकती है। निर्णय में स्पष्ट है कि राज्य सरकार मनमाने तरीके से दंडात्मक राशि नहीं वसूल सकती। यह मध्य प्रदेश के 15 गुना अर्थदंड और पर्यावरण क्षति के नाम पर अतिरिक्त शुल्क पर सवाल उठाता है।
4. *कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, (2017) 9 SCC 499*
ओडिशा में अवैध खनन के इस историческом मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरण मंजूरी और वन मंजूरी के बिना खनन को पूरी तरह अवैध ठहराया। न्यायालय ने अवैध रूप से निकाले गए खनिज की कीमत के 100% तक जुर्माना लगाने का आदेश दिया। धारा 21(5) की व्याख्या करते हुए कहा कि क्षति की वसूली compensatory है और इसे दांडिक प्रक्रिया से अलग नहीं किया जा सकता। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि पर्यावरण क्षति को मनमाने ढंग से धनराशि में नहीं नापा जा सकता और राज्य सरकार केंद्रीय कानून से अधिक शक्तियां नहीं ले सकती।
### राज्य नियमों में वैधानिक दोष: दांडिक न्याय को दरकिनार कर राजस्व उगाही
भारत सेन ने कहा कि उपरोक्त निर्णयों के आलोक में मध्य प्रदेश खनिज नियम 2022 कई जगहों पर केंद्रीय अधिनियम का उल्लंघन कर रहे हैं:
– जप्त संपत्ति का व्ययन राजस्व न्यायालय को सौंपना (नियम 18, 19, 21)।
– प्रषमन पर दबाव और अतिरिक्त शुल्क।
– अपील के लिए 10% राशि जमा करने की बाध्यता।
– पर्यावरण क्षति के नाम पर मनमाना शुल्क।
सेन ने तंज कसा, “ये नियम ‘अली बाबा और चालीस चोर’ की कहानी जैसे लगते हैं, जहां राज्य सरकार खुद कानून की रखवाली करते हुए खजाना लूट रही है।”
### आम आदमी पार्टी की मांग: तुरंत संशोधन
पार्टी ने मांग की है कि नियमों को केंद्रीय अधिनियम के अनुरूप संशोधित किया जाए, दांडिक विचारण अनिवार्य हो और ईमानदार कारोबारियों को संरक्षण मिले।
सेन ने कहा, “सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय स्पष्ट हैं। राज्य सरकार इन्हें नजरअंदाज कर नागरिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकती।”
(यह लेख आम आदमी पार्टी के ज्ञापन एवं सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों पर आधारित है।)