
लेखक: भारत सेन, अधिवक्ता, जिला न्यायालय बैतूल (आम आदमी पार्टी के बैतूल विधि सलाहकार)**
जोगिंदर नाथ मंडल की ‘गलती’ की सजा आज भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में दलित समाज भुगत रहा है
**नई दिल्ली, 25 दिसंबर 2025**: भारत के विभाजन के समय एक दलित नेता जोगिंदर नाथ मंडल ने मुस्लिम लीग का साथ दिया और पाकिस्तान चुन लिया। वे मोहम्मद अली जिन्ना से प्रभावित थे और मानते थे कि इस्लाम में जाति व्यवस्था नहीं है, इसलिए दलितों का भविष्य पाकिस्तान में बेहतर होगा। मंडल पाकिस्तान के पहले कानून और श्रम मंत्री बने, लेकिन जिन्ना की मौत के बाद सब कुछ बदल गया। हिंदुओं और विशेषकर दलितों पर अत्याचार बढ़े, जिससे निराश होकर 1950 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और भारत लौट आए।
मंडल के इस फैसले को कई लोग ‘गलती’ मानते हैं, क्योंकि उनके प्रभाव से पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के लाखों दलित पाकिस्तान में रह गए। आज, 75 साल बाद भी, पाकिस्तान और बांग्लादेश में दलित (अनुसूचित जाति के हिंदू) समाज भेदभाव, गरीबी और हिंसा की मार झेल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मंडल की यह ‘गलती’ आज भी इन समुदायों को सजा की तरह भुगतनी पड़ रही है।
**पाकिस्तान में दलितों की स्थिति**: पाकिस्तान में हिंदू आबादी का 70-75% दलित हैं। आधिकारिक आंकड़ों में अनुसूचित जाति की संख्या लाखों में है, लेकिन वास्तविकता में करोड़ों हो सकती है। दलित मुख्य रूप से सफाई कर्मचारी, बॉन्डेड लेबर या निचले कामों में लगे हैं। उन्हें धार्मिक और जातिगत दोनों तरह का भेदभाव झेलना पड़ता है। जबरन धर्मांतरण, अपहरण, बलात्कार और हिंसा की घटनाएं आम हैं। सरकारी नौकरियों या राजनीति में उनकी भागीदारी न के बराबर है। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स के अनुसार, दलित महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
**बांग्लादेश में हालात**: बांग्लादेश में भी दलित समुदाय (लगभग 50 लाख) गरीबी और भेदभाव का शिकार है। वे सफाई, चमड़े के काम या अन्य निचले पेशों में फंसे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं। 1971 के बाद भी जातिगत भेदभाव जारी है, हालांकि मुस्लिम बहुल समाज में इसे धार्मिक रंग दिया जाता है। दलितों को सार्वजनिक जगहों पर प्रवेश से रोका जाता है और राजनीतिक प्रतिनिधित्व सीमित है।
इतिहासकारों का मानना है कि मंडल ने दलित-मुस्लिम एकता का सपना देखा था, लेकिन पाकिस्तान में इस्लामी राज्य की नीतियों ने इसे तोड़ दिया। मंडल की इस्तीफा पत्र में उन्होंने हिंदुओं पर अत्याचारों का विस्तार से जिक्र किया था। आज दलित कार्यकर्ता कहते हैं कि मंडल की विरासत एक सबक है – गलत भरोसे की कीमत आने वाली पीढ़ियां चुकाती हैं।
यह स्थिति दक्षिण एशिया में जातिगत भेदभाव की गहरी जड़ों को उजागर करती है, जहां दलित आज भी समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं।




