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दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय: पति/पत्नी अपने साथी के प्रेमी/प्रेमिका पर नुकसान के लिए मुकदमा कर सकते हैं

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ब्यूरो रिपोर्ट 

दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय: पति/पत्नी अपने साथी के प्रेमी/प्रेमिका पर नुकसान के लिए मुकदमा कर सकते हैं

परिचय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सितंबर 2025 में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यद्यपि भारत में व्यभिचार (adultery) को आपराधिक अपराध के दायरे से हटा दिया गया है, फिर भी एक पति या पत्नी अपने साथी के प्रेमी या प्रेमिका के खिलाफ नागरिक मुकदमा दायर कर सकता है। यह मुकदमा “एलियनेशन ऑफ अफेक्शन” (स्नेह का हनन) नामक सिविल टॉर्ट के तहत दायर किया जा सकता है, जो विवाह में तीसरे पक्ष के जानबूझकर किए गए हस्तक्षेप के कारण होने वाले भावनात्मक या वैवाहिक नुकसान के लिए मुआवजे की मांग की अनुमति देता है। यह निर्णय भारतीय कानूनी ढांचे में एक उभरते हुए क्षेत्र को रेखांकित करता है, जहां आपराधिक दंड समाप्त होने के बावजूद नागरिक उपाय उपलब्ध हैं।

पृष्ठभूमि: व्यभिचार का डिक्रिमिनलाइजेशन

2018 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इस धारा के तहत व्यभिचार को आपराधिक अपराध माना जाता था, जिसके लिए जेल की सजा हो सकती थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह कानून समानता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता के अधिकारों का उल्लंघन करता है। इस निर्णय ने व्यभिचार को आपराधिक दायरे से हटा दिया, जिसका अर्थ है कि अब इसे अपराध के रूप में दंडित नहीं किया जा सकता। हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने हालिया फैसले में स्पष्ट किया कि डिक्रिमिनलाइजेशन का मतलब यह नहीं है कि व्यभिचार से संबंधित सभी कानूनी परिणाम समाप्त हो गए हैं। नागरिक कानून के तहत, विशेष रूप से टॉर्ट कानून के अंतर्गत, प्रभावित पक्ष मुआवजे की मांग कर सकता है।

“एलियनेशन ऑफ अफेक्शन” टॉर्ट क्या है?

“एलियनेशन ऑफ अफेक्शन” एक सिविल टॉर्ट है, जो मुख्य रूप से एंग्लो-अमेरिकी सामान्य कानून (common law) पर आधारित है। यह टॉर्ट उस स्थिति में लागू होता है जब कोई तीसरा पक्ष जानबूझकर या लापरवाही से किसी विवाह में हस्तक्षेप करता है, जिसके परिणामस्वरूप पति-पत्नी के बीच स्नेह, विश्वास, या साहचर्य की हानि होती है। इस टॉर्ट के तहत, प्रभावित पति या पत्नी निम्नलिखित के लिए मुआवजा मांग सकता है:

 

 

भावनात्मक संकट (emotional distress)

 

साहचर्य की हानि (loss of companionship)

 

वैवाहिक रिश्ते में व्यवधान (disruption of marital harmony)

भारत में, यह टॉर्ट अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, और इसे लागू करने के लिए कोई व्यापक कानूनी ढांचा मौजूद नहीं है। फिर भी, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत को मान्यता दी है और इसे भारतीय संदर्भ में लागू करने की संभावना को स्वीकार किया है।

प्रमुख मामले: शेली महाजन बनाम भानुश्री बहल और अन्य

दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले में शेली महाजन बनाम भानुश्री बहल और अन्य मामले का उल्लेख महत्वपूर्ण है। इस मामले में, एक पत्नी ने अपने पति की कथित प्रेमिका पर “एलियनेशन ऑफ अफेक्शन” के आधार पर मुकदमा दायर किया और 4 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की। पत्नी का दावा था कि तीसरे पक्ष (प्रेमिका) ने जानबूझकर उनके वैवाहिक रिश्ते में हस्तक्षेप किया, जिसके परिणामस्वरूप भावनात्मक और वैवाहिक नुकसान हुआ।

अदालत ने इस मामले में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर जोर दिया:

 

 

नागरिक टॉर्ट के तहत मुकदमा: यह मामला सिविल टॉर्ट कानून के अंतर्गत आता है, न कि पारिवारिक अदालत के अधिकार क्षेत्र में। इसलिए, ऐसे दावों को सिविल अदालतों में सुना जाएगा।

 

जानबूझकर हस्तक्षेप: मुआवजा तभी मांगा जा सकता है, जब यह सिद्ध हो कि तीसरे पक्ष ने जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से वैवाहिक रिश्ते में हस्तक्षेप किया।

 

नुकसान का प्रमाण: दावेदार को यह सिद्ध करना होगा कि तीसरे पक्ष के कार्यों के कारण मापने योग्य नुकसान हुआ, जैसे कि भावनात्मक संकट या वैवाहिक साहचर्य की हानि।

 

स्वैच्छिक कार्यों का अपवाद: यदि पति या पत्नी ने पूरी तरह से अपनी मर्जी से और बिना किसी बाहरी प्रलोभन या दबाव के कार्य किया, तो तीसरे पक्ष के खिलाफ मुआवजा दावा नहीं किया जा सकता। व्यक्तिगत स्वायत्तता का सम्मान किया जाता है।

कानूनी स्थिति और चुनौतियाँ

दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय कानूनी व्यवस्था में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। हालांकि, इस क्षेत्र में अभी कई चुनौतियाँ हैं:

 

 

कानूनी ढांचे की कमी: भारत में “एलियनेशन ऑफ अफेक्शन” टॉर्ट के लिए कोई स्पष्ट कानूनी ढांचा या दिशानिर्देश मौजूद नहीं है। मुआवजे की राशि तय करने के लिए कोई मानक मापदंड नहीं हैं।

 

सबूत की जटिलता: यह सिद्ध करना कि तीसरे पक्ष ने जानबूझकर हस्तक्षेप किया और इससे नुकसान हुआ, एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है। इसके लिए ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है, जैसे संदेश, पत्र, या अन्य संचार।

 

नैतिक और सामाजिक सवाल: इस तरह के मुकदमे सामाजिक और नैतिक सवाल उठाते हैं, जैसे कि क्या निजी रिश्तों में हस्तक्षेप को कानूनी रूप से दंडित करना उचित है।

निष्कर्ष

दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय दर्शाता है कि व्यभिचार के डिक्रिमिनलाइजेशन के बावजूद, वैवाहिक रिश्तों में तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के लिए नागरिक कानून के तहत जवाबदेही बनी रहती है। “एलियनेशन ऑफ अफेक्शन” टॉर्ट प्रभावित पति या पत्नी को मुआवजे की मांग करने का अवसर प्रदान करता है, बशर्ते वे नुकसान और जानबूझकर हस्तक्षेप को सिद्ध कर सकें। यह कानूनी दृष्टिकोण भारत में अभी प्रारंभिक चरण में है, और भविष्य में इस क्षेत्र में और स्पष्टता की आवश्यकता होगी। यह निर्णय न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और नैतिक चर्चाओं को भी बढ़ावा देता है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और वैवाहिक रिश्तों के बीच संतुलन को परिभाषित करने में मदद करेगा।