पन्ना जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को रिटायरमेंट से महज 10 दिन पहले हाईकोर्ट ने किया निलंबित

वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन
पन्ना जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को रिटायरमेंट से महज 10 दिन पहले हाईकोर्ट ने किया निलंबित: गंभीर अनियमितताओं का आरोप
**जबलपुर/पन्ना, 22 नवंबर 2025**: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक चौंकाने वाले फैसले में पन्ना जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को उनके रिटायरमेंट से मात्र 10 दिन पहले निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई न्यायिक प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं और कथित लापरवाही के आरोपों के आधार पर की गई है, जिसने पूरे राज्य की न्यायिक व्यवस्था में हलचल मचा दी है। निलंबन के तुरंत बाद विशेष न्यायाधीश प्रदीप कुशवाहा को पन्ना जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया है।
#### मामले की पृष्ठभूमि और निलंबन के कारण
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर की ओर से जारी आदेश के अनुसार, पन्ना जिले के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश (नाम गोपनीय रखा गया है, लेकिन वे रिटायरमेंट के करीब थे) पर कई गंभीर आरोप लगे हैं। उच्च न्यायालय की जांच में पाया गया कि:
– **न्यायिक अनियमितताएं**: हाल के महीनों में कई महत्वपूर्ण मामलों में प्रक्रियागत उल्लंघन, जैसे बिना उचित सुनवाई के फैसले पारित करना और दस्तावेजों की अपूर्ण जांच।
– **प्रशासनिक लापरवाही**: अदालत के स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार, फाइलों के प्रबंधन में ढिलाई और बार एसोसिएशन की शिकायतों को अनदेखा करना।
– **भ्रष्टाचार के संकेत**: कुछ मामलों में पक्षपातपूर्ण रवैया, जहां प्रभावशाली व्यक्तियों के पक्ष में निर्णय लिए गए, जिसकी शिकायतें स्थानीय वकीलों और प्रभावित पक्षों ने दर्ज कराई थीं।
– **रिटायरमेंट पूर्व की जांच**: उच्च न्यायालय की विजिलेंस टीम ने रिटायरमेंट से ठीक पहले एक विशेष जांच शुरू की, जिसमें पुराने रिकॉर्ड्स की समीक्षा की गई। इसमें 2024-2025 के दौरान कम से कम 15 मामलों में गड़बड़ी पाई गई, जो न्यायिक अखंडता पर सवाल खड़े करती हैं।
उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी आदेश में कहा गया है, “न्यायिक अधिकारी का कर्तव्य न केवल निर्णय पारित करना है, बल्कि न्याय की पवित्रता को बनाए रखना भी है। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर तत्काल निलंबन आवश्यक है, ताकि आगे की जांच निष्पक्ष हो सके।” यह निलंबन मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमावली, 1994 की धारा 12 के तहत किया गया है, जो गंभीर कदाचार के मामलों में तत्काल कार्रवाई की अनुमति देती है।
निलंबित अधिकारी का रिटायरमेंट 30 नवंबर 2025 को निर्धारित था, लेकिन इस कार्रवाई से उनकी पेंशन और अन्य लाभों पर भी असर पड़ सकता है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को भी इसकी सूचना दी है, जो आगे की अनुशासनात्मक कार्रवाई में शामिल होगी।
#### निलंबन का तत्काल प्रभाव और प्रतिक्रियाएं
निलंबन के आदेश के साथ ही पन्ना जिले की अदालतों में अतिरिक्त प्रभार विशेष न्यायाधीश प्रदीप कुशवाहा को सौंप दिया गया है। कुशवाहा, जो पहले ही पन्ना में विशेष मामलों की सुनवाई कर रहे थे, अब पूर्ण जिम्मेदारी संभालेंगे। स्थानीय बार एसोसिएशन ने इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन चिंता जताई है कि इससे लंबित मामलों में देरी हो सकती है। एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा, “हम लंबे समय से शिकायत कर रहे थे। यह फैसला न्यायिक पारदर्शिता के लिए सकारात्मक है, लेकिन जिले को जल्द स्थायी व्यवस्था की जरूरत है।”
राज्य के कानूनी हलकों में यह मामला चर्चा का विषय बन गया है। पूर्व न्यायाधीशों का मानना है कि यह निलंबन “न्यायिक जवाबदेही” को मजबूत करने का संकेत है। एक वरिष्ठ वकील ने टिप्पणी की, “रिटायरमेंट के ठीक पहले निलंबन दुर्लभ है, लेकिन यह दर्शाता है कि उच्च न्यायालय किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करेगा।” वहीं, कुछ अधिकारियों ने इसे “राजनीतिक दबाव” का परिणाम बताया, हालांकि कोई ठोस सबूत नहीं है।
मध्य प्रदेश में न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के मामले बढ़ रहे हैं। 2024-2025 में ही 5 से अधिक अधिकारियों पर अनुशासनात्मक जांच चली, जिनमें से 2 को निलंबित किया गया। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, पन्ना जिले में 12,000 से अधिक मामले लंबित हैं, और इस निलंबन से सुनवाई में अस्थायी व्यवधान की आशंका है।
#### आगे की कार्रवाई और व्यापक प्रभाव
उच्च न्यायालय ने निलंबित अधिकारी को 15 दिनों के अंदर अपना पक्ष रखने का अवसर दिया है। पूर्ण जांच के बाद, यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो सेवा से बर्खास्तगी या अन्य सजा का प्रावधान है। राज्य सरकार की ओर से न्याय विभाग ने कहा है कि “यह मामला पारदर्शी तरीके से निपटाया जाएगा।”
यह घटना मध्य प्रदेश न्यायपालिका में सुधार की मांग को तेज कर रही है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि नियमित ट्रेनिंग और विजिलेंस तंत्र को मजबूत किया जाए, ताकि ऐसी अनियमितताएं रोकी जा सकें। पन्ना जैसे दूरस्थ जिलों में न्यायिक स्टाफ की कमी भी एक बड़ी समस्या है, जो दबाव बढ़ाती है।