
लेखक: भारत सेन, अधिवक्ता, जिला न्यायालय बैतूल
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: अलग शहर में रहने वाले देवर के खिलाफ 498A और आत्महत्या के लिए उकसावे की कार्यवाही रद्द, सामान्य आरोपों को आधारहीन माना
*नई दिल्ली, 11 नवंबर 2025*: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या के लिए उकसावे के मामलों में दूर के रिश्तेदारों के खिलाफ दर्ज मुकदमों पर अंकुश लगाते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की डिवीजन बेंच ने हिमाचल प्रदेश के एक मामले में मृतका के देवर (भाई-बहन के पति के भाई) आशीष कुमार के खिलाफ धारा 498A और 306 IPC के तहत चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब आरोपी अलग शहर में रहता हो और उसके खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप या ठोस सामग्री न हो तो ऐसी कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
यह मामला *आशीष कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य* (क्रिमिनल अपील नंबर 4893/2025 और जुड़ी अपील 4894/2025) से संबंधित है, जो स्पेशल लीव पिटिशन (क्रिमिनल) नंबर 8540/2025 और 9222/2025 से उत्पन्न हुई थीं।
#### मामले की पृष्ठभूमि और तथ्य
यह मामला हिमाचल प्रदेश में एक विवाहित महिला की आत्महत्या से जुड़ा है। मृतका ने कथित तौर पर दहेज प्रताड़ना और पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या के बाद मृतका के परिजनों ने उसके पति, ससुराल वालों और दूर के रिश्तेदारों के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसावा) के साथ-साथ दहेज निषेध अधिनियम की संबंधित धाराएं लगाई गईं।
आरोपी आशीष कुमार मृतका का देवर था, लेकिन वह ससुराल के साथ नहीं रहता था। वह दिल्ली में अलग रहता था और परिवार के दैनिक जीवन में उसकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं थी। FIR और चार्जशीट में उसके खिलाफ आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे – जैसे “ससुराल वालों ने मिलकर प्रताड़ित किया”। कोई विशिष्ट घटना, बातचीत या कृत्य का जिक्र नहीं था जिसमें आशीष कुमार ने मृतका को प्रताड़ित किया हो या आत्महत्या के लिए उकसाया हो।
इसी मामले में एक अन्य सह-आरोपी के खिलाफ पहले ही कार्यवाही रद्द हो चुकी थी, क्योंकि उसके खिलाफ भी पर्याप्त सामग्री नहीं थी। आशीष कुमार ने भी हाईकोर्ट में कार्यवाही रद्द करने की अर्जी दी, लेकिन राहत नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन दाखिल की, जिसे कोर्ट ने अपील में बदलकर सुनवाई की।
#### सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णय और कानूनी बिंदु
1. *कार्यवाही रद्द करने के आधार*: कोर्ट ने कहा कि धारा 482 CrPC के तहत हाईकोर्ट को ऐसी कार्यवाही रद्द करने की शक्ति है जहां आरोपों में ठोस सामग्री का अभाव हो। आशीष कुमार के खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं थे और वह अलग शहर (दिल्ली) में रहता था, इसलिए उसके शामिल होने का कोई आधार नहीं बनता।
2. *धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसावा)*: कोर्ट ने दोहराया कि इस धारा के लिए स्पष्ट रूप से यह साबित होना चाहिए कि आरोपी ने मृतक को जानबूझकर ऐसा कृत्य किया जिससे वह आत्महत्या के लिए मजबूर हो। सामान्य पारिवारिक कलह या अस्पष्ट आरोप इस धारा के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
3. *धारा 498A (क्रूरता)*: देवर जैसे दूर के रिश्तेदार के खिलाफ तब तक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती जब तक उसके खिलाफ विशिष्ट और ठोस आरोप न हों। कोर्ट ने कहा कि सामान्य आरोपों के आधार पर दूर के रिश्तेदारों को फंसाना कानून का दुरुपयोग है।
4. *कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग*: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब आरोपी अलग घर में रहता हो और उसके खिलाफ कोई सामग्री न हो तो कार्यवाही जारी रखना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
#### फैसले के निहितार्थ
यह फैसला 498A और 306 IPC के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक और कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले कई फैसलों (जैसे राजेश शर्मा, काहकशां कौर आदि) में भी ऐसे मामलों में सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय उन हजारों मामलों में राहत देगा जहां दूर के रिश्तेदारों को केवल सामान्य आरोपों के आधार पर फंसाया जाता है। साथ ही, यह पुलिस और निचली अदालतों को जांच और चार्जशीट में विशिष्टता लाने के लिए प्रेरित करेगा।
मामले में अन्य आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रह सकती है, लेकिन दूर के रिश्तेदारों को बेवजह परेशान करने की प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।