
ब्यूरो रिपोर्ट
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सारनी ने धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जन्मजयंती मनाई*
*स्वयंसेवकों ने भगवान बिरसा मुंडा अमर रहें के जयघोष लगाकर उन्हें याद किया*
सारनी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जन्मजयंती महर्षि वाल्मीकि शाखा ग्राउंड में मनाई जिसमें दो दर्जन से अधिक स्वयंसेवक उपस्थित रहें सर्वप्रथम भगवान बिरसा मुंडा के छायाचित्र पर माल्यर्पण किया गया उसके बाद सभी स्वयंसेवकों ने जय घोष के साथ एक-एक कर भगवान बिरसा मुंडा के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया। जिसकी अध्यक्षता सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी में पदस्थ राजेश टेकाम द्वारा कि गई वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला सह संघचालक दशरथ डांगे ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत के गौरवशाली स्वाधीनता संग्राम में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों व योद्धाओं की एक दीर्घ परंपरा रही हैं और भगवान बिरसा मुंडा का योगदान अविस्मरणीय रहा हैं। भगवान बिरसा मुंडा का इस स्वतंत्रता संग्राम के श्रेष्ठतम नायकों, योद्धाओं में विशेष स्थान है। 15 नवंबर 1875 को उलीहातु (झारखंड) में जन्मे भगवान बिरसा का यह 150 वाँ जन्म वर्ष है। अंग्रेजों और उनके प्रशासन द्वारा जनजातियों पर किए जा रहें अत्याचारों से त्रस्त होकर उनके पिता उलीहातु से बंबा जाकर बस गए थें।लगभग 10 वर्ष की आयु में उन्हें चाईबासा मिशनरी स्कूल में प्रवेश मिला। मिशनरी स्कूलों में जनजाति छात्रों को उनकी धार्मिक परंपराओं से दूर कर ईसाई मत में मतांतरित करने के षड़यंत्र का उन्हें अनुभव आया।

मतांतरण से न केवल व्यक्ति की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक चेतना अवरुद्ध होती हैं बल्कि धीरे-धीरे समाज की अस्मिता भी नष्ट हो जाती है। केवल 15 वर्ष की आयु में ईसाई मिशनरियों के षडयंत्रों को समझते हुए उन्होंने समाज जागरण के द्वारा अपनी धार्मिक अस्मिता और परम्पराओं की रक्षा के लिए संघर्ष प्रारंभ कर दिया। मात्र 25 वर्ष की आयु में भगवान बिरसा ने उनके समाज में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर पैदा कर दी जो स्वयं विकट परिस्थितियों से ग्रस्त था। ब्रिटिश शासन द्वारा प्रशासनिक सुधार के नाम पर वनों का अधिग्रहण करते हुए जनजातीय समाज से भूमि का स्वामित्व छीनना तथा जबरन श्रम नीतियां लागू करने के विरोध में भगवान बिरसा ने व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया। उनके आंदोलन का नारा “अबुआ दिशुम-अबुआ राज” (हमारा देश-हमारा राज) युवाओं के लिए एक प्रेरणा मंत्र बन गया, जिससे हजारों युवा “स्वधर्म” और “अस्मिता” के लिए बलिदान देने हेतु प्रेरित हुए। जनजातियों के अधिकारों, आस्थाओं, परंपराओं और स्वधर्म की रक्षा के लिए भगवान बिरसा ने अनेक आंदोलन व सशस्त्र संघर्ष किए। अपने पवित्र जीवन लक्ष्य के लिए संघर्ष करते हुए वह पकड़े गए और मात्र 25 वर्ष की अल्पआयु में कारागार में दुर्भाग्यपूर्ण और संदेहास्पद परिस्थिति में उनका बलिदान हुआ। समाज के प्रति अपने प्रेम और बलिदान के कारण संपूर्ण जनजाति समाज उन्हें देव स्वरूप मानकर धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा कहकर श्रद्धान्वत होता हैं। प्रतिवर्ष 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा का जन्मदिन “जनजाति गौरव दिवस” के रूप में मनाया जाता है। उनका बलिदान स्वाधीनता संघर्ष में जनजातियों के महती योगदान का उदाहरण बनते हुए संपूर्ण राष्ट्र के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है। धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परम्परा, स्वाभिमान और जनजातीय समाज की अस्मिता की रक्षा हेतु भगवान बिरसा मुंडा के जीवन का संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती मनाने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दो दर्जन से स्वयंसेवक उपस्थित रहें।



