
बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला: बिना लाइसेंस साहूकारी करने वालों को चेक बाउंस केस में नहीं मिलेगी धारा 138 की सुरक्षा
**मुंबई, 2 अगस्त 2022**: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि बिना लाइसेंस के धन उधार देने (साहूकारी) के अवैध व्यवसाय से उत्पन्न लेन-देन पर परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 लागू नहीं होती। न्यायमूर्ति प्रकाश डी. नाइक की एकल पीठ ने यह फैसला श्रीमती मोनिका सुनीत उज्जैन बनाम सांचू एम. मेनन एवं अन्य मामले में दिया।
यह मामला वर्ष 2015 से चला आ रहा था, जिसमें आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन संख्या 394/2015 दाखिल किया गया था। शिकायतकर्ता मोनिका सुनीत उज्जैन ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादियों ने उन्हें दिए गए ऋण के बदले जारी किए चेक अनादृत (बाउंस) हो गए, जिसके लिए उन्होंने धारा 138 के तहत मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत दर्ज की थी। मजिस्ट्रेट ने प्रक्रिया जारी करने का आदेश दिया था।
हालांकि, प्रतिवादियों ने इस आदेश को सत्र न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर चुनौती दी। सत्र न्यायालय ने पाया कि शिकायतकर्ता मोनिका सुनीत उज्जैन के पास महाराष्ट्र मनी लेंडिंग (रेगुलेशन) अधिनियम के तहत आवश्यक लाइसेंस नहीं था और वे अवैध रूप से साहूकारी का व्यवसाय कर रही थीं। सत्र न्यायालय ने मजिस्ट्रेट के प्रक्रिया जारी करने के आदेश को रद्द कर दिया।
मोनिका सुनीत उज्जैन ने सत्र न्यायालय के इस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने विस्तृत सुनवाई के बाद सत्र न्यायालय के आदेश को सही ठहराया और पुनरीक्षण आवेदन खारिज कर दिया।
#### अदालत का मुख्य तर्क:
1. **अनुबंध अधिनियम की धारा 23**: न्यायालय ने कहा कि कानून द्वारा निषिद्ध किसी अनुबंध का प्रतिफल या उद्देश्य अवैध होता है और ऐसा अनुबंध शून्य होता है। बिना लाइसेंस के धन उधार देने का व्यवसाय महाराष्ट्र में कानूनन प्रतिबंधित है। ऐसे व्यवसाय से उत्पन्न सभी लेन-देन शून्य माने जाते हैं।
2. **धारा 138 की सीमा**: परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 केवल वैध और कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण या दायित्व के निर्वहन के लिए जारी चेक के अनादरण पर लागू होती है। यदि चेक किसी अवैध लेन-देन (जैसे बिना लाइसेंस साहूकारी) की सुरक्षा के रूप में दिए गए हैं, तो यह अपराध नहीं बनता।
3. **धारणाओं का अभाव**: अधिनियम की धारा 118 और 139 के तहत प्रतिफल और चेक की वैधता की धारणा केवल तभी लागू होती है जब चेक वैध ऋण के लिए जारी किए गए हों। अवैध लेन-देन में ये धारणाएं उत्पन्न नहीं होतीं।
4. **पुनरीक्षण अधिकार**: दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 397 के तहत सत्र न्यायालय को मजिस्ट्रेट के अवैध या त्रुटिपूर्ण आदेश को रद्द करने का पूर्ण अधिकार है। हाईकोर्ट ने पाया कि सत्र न्यायालय का निर्णय तथ्यों और कानून पर पूरी तरह आधारित था, इसलिए इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।
#### फैसले के व्यापक प्रभाव:
यह निर्णय उन सभी मामलों में मिसाल बनेगा जहां साहूकार बिना वैध लाइसेंस के ऊंचे ब्याज पर पैसा उधार देते हैं और चेक बाउंस होने पर धारा 138 का सहारा लेते हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि अवैध साहूकारी को कानूनी संरक्षण नहीं दिया जा सकता। इससे आम लोगों को ऐसे अवैध साहूकारों से कुछ हद तक राहत मिल सकती है, लेकिन साथ ही यह याद दिलाता है कि सभी धन उधार देने वाले व्यवसायियों को संबंधित राज्य के मनी लेंडिंग कानूनों का पालन करना अनिवार्य है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला देश के अन्य हाईकोर्ट्स में भी इसी तरह के मामलों में उद्धृत किया जाएगा। बाद में इस फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) को सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज कर दिया था, जिससे बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय अंतिम रूप से कायम रहा।
यह मामला एक बार फिर साहूकारी के नियमन और चेक बाउंस कानून की सीमाओं पर गंभीर बहस छेड़ता है।





