स्टोन क्रेशर संचालको के लिए अभिशाप बना मप्र गौण खनिज नियम 1996,संचालको को क्या करना चाहिए ?
वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन
- स्टोन क्रेशर संचालको के लिए अभिशाप बना मप्र गौण खनिज नियम 1996
- स्टोन क्रेशर संचालको को क्या करना चाहिए ?
बैतूल। मप्र राज्य। एक देश, एक कानून एवं एक नियम की मांग खनिज कारोबारियों को करना चाहिए। एक देश, एक कानून हैं लेकिन खनिज कानून एवं खनिज नियम में विसंगतियां मौजूद हैं। मप्र गौण खनिज नियम 1996 खनिज कारोबारी जैसे स्टोन क्रेशर संचालको के लिए अभिशाप साबित हुआ हैं। आज भी खनिज नियम प्रभावशली हैं जिसे बदलने की आवश्यकता हैं।
मप्र प्रदेश खनिज नियम 2022 बनाए गए लेकिन पुराने खनिज नियम के कुछ प्रावधानों को आज भी जिन्दा रखा गया हैं। खनिज निरीक्षक की मनमानी और अवैधानिक उगाही आज भी जारी हैं। झूठे एवं फर्जी खनिज अपराध के मुकदमें तैयार करने का पूर्ण अवसर खनिज नियम प्रदान करते हैं। स्टोन क्रेशर को कभी भी बदं करवाया जा सकता हैं, विद्युत कनेक्शन काटा जा सकता हैं।
मप्र राज्य सरकार को केवल राजस्व ही नहीं चाहिए बल्कि राज्य सरकार को भारी भरकम अर्थदण्ड भी चाहिए। इसके अतिरिक्त राजस्व अधिकारियों को भी खनिज कारोबारियों से कुछ चाहिए तो पुलिस को भी कुछ चाहिए। खनिज कारोबार में भ्रष्टाचार का कारण मप्र खनिज नियम हैं।
मप्र राज्य सरकार ने गौण खनिज नियम 1996 से मप्र खनिज नियम 2022 तक ऐसे प्रावधान बनाए जिस कारण खनिज आम जनता की पहुंच के परे चला गया, खनिज लगातार महंगा होता चला हैं। खनिज नियम के कारण खनिज अपराध में वृद्धि हुई हैं। गौण खनिज का अवैधानिक कारोबार लगातार बढ़ता चला गया हैं। खनिज खदानों की निलामी बंद कर दे, ग्राम पंचायतो को खदान का संचालन सौप दे तो खनिज सस्ता हो जायेगा। परेशानी यह हैं कि केवल रायल्टी से सरकार का खजाना नहीं भरता हैं। अर्थदण्ड सरकारी खजाना भरने का एक जरिया हैं। सरकार नियम बनाकर मनमानी रकम वसूल सकती हैं, अर्थदण्ड को आम जनता स्वीकार करके बैठी हैं, कही कोई विरोध नहीं हैं, कही कोई शिकायत विधायक, सांसद और मंत्रियों की ओर से नहीं हैं।
स्टोन क्रेशर पर सरकारी बैंको का करोड़ो रूपए का कर्ज हैं, संचालक मासिक किश्तो की अदायगी कर रहा हैं। मप्र गौण खनिज नियम 1996 से सरकारी नियंत्रण में स्टोन क्रेशर संचालक हैं। खनिज निरीक्षक का काम हैं, तय मापदण्डों पर खनन का निरीक्षण करना हैं इसकी आड़ में मासिक वसूली करना हैं। इसके कारण खनिज महंगा हो जाता हैं। खनिज अधिकारी अपनी वसूली में वृद्धि करते रहते हैं, तो बाजार में गिट्टी की कीमतो में वृद्धि हो जाती हैं।
मप्र खनिज नियम 2021 के कारण खनिज अधिकारी के साथ साथ राजस्व अधिकारी और तहसीलदार को भी वसूली का अवसर मिल जाता हैं। पुलिस को खनिज वाहनों को रोकने का पूर्ण अवसर मिला हुआ हैं। खनिज ज्यादा महंगा हो जात हैं।
स्टोन क्रेशर संचालाको पर दबाव बनाए रखने के कई हथकण्डे हैं। खनिज अधिकारी जब मन करता हैं, स्टोन क्रेशर पर पहुंच जाता हैं, एक पंचनामा तैयार होता हैं। राजस्व न्यायालय में खनिज अपराध का मामला चलने लग जाता हैं। करोड़ो रूपए का मामला चलने लग जाता हैं। राजस्व न्यायालय खनिज विभाग के किसी भी प्रतिवेदन को निरस्त नहीं कर सकती हैं खनिज कारोबारी पर करोड़ो रू0 का जुर्माना ठोक दिया जाता हैं।
व्यवस्था का दोष देखिए जिस स्टोन क्रेशर पर सरकारी बैंको या फायनेंस कंपनी का करोड़ो रूपए का ऋण बकाया हैं, स्टोन क्रेशर पर कार्यवाही करने से पहले बैंक, फायनेंस कंपनी और बीमा कंपनी को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया जाता हैं। राजस्व न्यायालय के एक आदेश से स्टोन क्रेशर पर तालाबंदी हो जाती हैं। खनिज कारोबारी का कारोबार बंद हो जाता हैं। बैंक एवं फायनेंस कंपनी का पैसा डूब गया, मजदूर बेरोजगार हो गए लेकिन इससे खनिज विभाग और मप्र राज्य सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता हैं।
खान एवं खनिज अधिनियम 1957 में मेजर मिनरल के वाणिज्यिक दोहन के लिए नियम बनाए गए हैं। व्यवस्था इस प्रकार बनाई गई हैं कि खनिज निरीक्षक को पहले तो अपराध को दांडिक न्यायालय में साबित करना पड़ेगा। इसके बाद राजस्व न्यायालय राजस्व की वसूली करेगी। दांडिक न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध खनिज अपराधी से ही राजस्व की वसूली की जाती हैं।
मप्र राज्य के खनिज विभाग सबसे पहले मामला राजस्व न्यायालय में पेश करता हैं, राजस्व न्यायालय में सुनवाई का अवसर देने का नाटक चलता हैं, वकील बहस करते हैं, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व फैसलो को पेश करते हैं लेकिन राजस्व न्यायालय एैसा कोई फैसला नहीं कर सकती हैं जिससे मप्र राज्य सरकार को राजस्व की क्षति हो। परिणामतः भारी भरकम अर्थदण्ड ठोक दिया जाता हैं।
इसके बाद खनिज विभाग मामलों को दांडिक न्यायालय के समक्ष पेश कर देता हैं। पुलिस विभाग के ठीक विपरीत खनिज विभाग के खनिज निरीक्षको को परिवाद लेखन आता नहीं हैं। खनिज विभाग परिवाद के साथ आरोपी को अदालत में पेश नहीं करता हैं। इस कारण मामला अदालत में लटका पड़ा रहता हैं, पेशी दर पेशी आरोपी का इंतजार होता रहता हैं।
खान एवं खनिज अधिनियम 1957 में खनिज अपराधी को तत्काल गिरफ्तार करने की शक्ति और न्यायालय में पेश करने की शक्ति खनिज निरीक्षक को प्राप्त हैं। पुलिस अधिकारी की समस्त शक्तियां खनिज निरीक्षक को प्राप्त हैं। पुलिस की तरह खनिज निरीक्षक को खनिज अपराध की तहकीकात करना हैं लेकिन प्रयोग में एैसा होता नहीं हैं। खनिज निरीक्षक का कार्य वाहनों एवं मशीनो की जप्ति तक सीमित हैं, उत्खनन स्थल की नपाई तक सीमित हैं। खनिज निरीक्षक को साक्ष्य विधि एवं प्रक्रिया विधि का कुछ पता नहीं हैं।
व्यवस्था का दोष देखे कानून कहता हैं कि खनिज अपराध एक संज्ञेय अपराध हैं लेकिन कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने की खनिज विभाग में कोई व्यवस्था नहीं हैं। सरकारी जमीन पर उत्खनन होता हैं तो खनिज निरीक्षक उत्खनन कर्ता का पता तक लगा नहीं पाते हैं और पता लगाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं बल्कि किसी भी व्यक्ति के विरूद्ध पंचनामा तैयार कर लेते हैं।
खनिज के मामलों में पैरवी कौन करेगा, आरोपी की ओर से अदालत में पैरवी कौन करेगा, यह आरोपी तय नहीं करता हैं बल्कि खनिज विभाग तय करता हैं। इसलिए केवल कुछ वकील ही खनिज के मामलों में पैरवी करते हैं। खनिज विभाग का प्रयास रहता हैं कि जुर्माना जल्द से जल्द जमा हो जाए, आरोपी का अधिवक्ता विधि, न्याय एवं मानवाधिकारों के सवाल प्रतिपरीक्षण में नहीं पूछे। यदि कोई अधिवक्ता आरोपी की ओर से विधि, न्याय एवं मानवाधिकार के प्रश्न पूछता हैं, खनिज विभाग की कार्यवाही पर सवाल उठाता हैं तो वह मैदान से बाहर कर दिया जाता हैं। खनिज विभाग के दबाव में खनिज अपराधी अपने ही अधिवक्ता को त्याग देते हैं क्योंकि खनिज अपराध ही खनिज कारोबार हैं।
विधायक, सांसद और मंत्री के परिजन ही स्टोन क्रेशर या खनिज का कारोबार कर सकते हैं। स्टोन क्रेशर या खनिज की खदान में विधायक, सांसद और मंत्री को भागेदारी देकर ही खनिज कारोबार किया जा सकता हैं। इसका एक मात्र कारण खनिज नियम के अन्याय परख प्रावधान हैं। यदि कोई नागरिक स्वरोजगार योजना मंे ऋण लेकर खनिज कारोबार करना चाहता हैं तो यह असंभव हैं।
स्टोन क्रेशर संचालको के लिए संदेश स्पष्ट हैं मप्र गौण खनिज नियम 1996 को निरस्त करने की मांग उठाना चाहिए। दांडिक न्यायालय में पहले खनिज अपराध का मामला चलना चाहिए, अपराध प्रमाणित होना चाहिए इसके बाद रायल्टी व अन्य टैक्स की वसूली होना चाहिए। अर्थदण्ड की वसूली बंद होना चाहिए। Bharat Sen Advocate Chamber No 24, Civil Court BETUL (MP) 9827306273