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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: मुस्लिम कानून के तहत बिना संतान वाली विधवा को पति की संपत्ति में केवल एक-चौथाई हिस्सा, वसीयत न होने पर तीन-चौथाई का दावा खारिज

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वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन 

 सुप्रीम कोर्ट का फैसला: मुस्लिम कानून के तहत बिना संतान वाली विधवा को पति की संपत्ति में केवल एक-चौथाई हिस्सा, वसीयत न होने पर तीन-चौथाई का दावा खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम उत्तराधिकार कानून को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति बिना वसीयत (विल) के मर जाता है और उसकी कोई संतान नहीं है, तो उसकी पत्नी (विधवा) को संपत्ति में केवल **एक-चौथाई (1/4) हिस्सा** ही मिलेगा। तीन-चौथाई हिस्से का दावा कानूनन अमान्य है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि मुस्लिम कानून के अनुसार उत्तराधिकार के नियम कुरान में निर्धारित हैं, और इनकी कोई उदार व्याख्या नहीं की जा सकती।

यह फैसला *जोहरबी बनाम इमाम खान* मामले में आया, जहां विधवा जोहरबी ने अपने पति चंद खान की संपत्ति में तीन-चौथाई हिस्सा मांगा था। चंद खान 2019 में बिना संतान और बिना वसीयत के चल बसे थे।

### कोर्ट के मुख्य निर्देश
सुप्रीम कोर्ट की पीठ—न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा—ने कहा कि मुस्लिम कानून में संपत्ति को **मत्रुका** (मृतक की छोड़ी गई संपत्ति) माना जाता है। वसीयत न होने पर यह अन्य वारिसों में बंटती है। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

– **विधवा का हिस्सा**: यदि मृतक की कोई संतान या पोते-पोतियां नहीं हैं, तो पत्नी को **एक-चौथाई हिस्सा** मिलेगा। यदि संतान हैं, तो यह हिस्सा **एक-आठवां (1/8)** तक सीमित रहेगा। यह कुरान के अध्याय 4, आयत 12 के अनुसार है।
– **तीन-चौथाई का दावा अमान्य**: विधवा का तर्क था कि भाई जैसे अन्य वारिस न होने पर पूरा हिस्सा मिलना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। शेष हिस्सा अन्य कानूनी वारिसों (जैसे भाई-बहन) को मिलेगा।
– **वसीयत की सीमा**: मुस्लिम कानून में वसीयत केवल संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा ही दे सकती है। बाकी हिस्सा अनिवार्य रूप से वारिसों में बंटेगा।
– **संपत्ति बिक्री समझौते का प्रभाव**: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मृतक के भाई द्वारा की गई संपत्ति बिक्री का समझौता (एग्रीमेंट टू सेल) विधवा के अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता। ऐसा समझौता स्वामित्व हस्तांतरित नहीं करता, और संपत्ति मत्रुका का हिस्सा बनी रहती है।

कोर्ट ने मौलाना के सिद्धांतों (मुल्ला के प्रिंसिपल्स ऑफ महोमेदन लॉ) का हवाला देते हुए कहा, “मुस्लिम उत्तराधिकार कानून में शेयरर्स को निर्धारित हिस्सा मिलता है। पत्नी को बिना संतान के 1/4 हिस्सा, अन्यथा 1/8।”

### पृष्ठभूमि
मामला महाराष्ट्र के नागपुर से जुड़ा है। चंद खान की मृत्यु के बाद उनकी विधवा जोहरबी ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी, जहां उन्हें केवल एक-चौथाई हिस्सा दिया गया था। हाईकोर्ट ने मुस्लिम कानून के आधार पर फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

इसके अलावा, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के हिंदी फैसले की अंग्रेजी अनुवाद की खराब गुणवत्ता पर नाराजगी जताई। पीठ ने कहा कि सटीक अनुवाद न होने से न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित होती है।

### कानूनी विशेषज्ञों की राय
वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने इसे मुस्लिम व्यक्तिगत कानून की मजबूती बताया। एक विशेषज्ञ ने कहा, “यह फैसला कुरानिक नियमों की पुन: पुष्टि करता है और संपत्ति विवादों में स्पष्टता लाता है।” बार काउंसिल ने भी फैसले का स्वागत किया, लेकिन अनुवाद की गुणवत्ता पर सुधार की मांग की।

### आम लोगों के लिए संदेश
मुस्लिम परिवारों को सलाह दी जाती है कि संपत्ति वितरण से पहले वकील से परामर्श लें। वसीयत बनाने में एक-तिहाई सीमा का पालन करें। यदि विवाद हो, तो तुरंत कोर्ट जाएं।

यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों को मजबूत करता है, लेकिन नियमों की सख्ती पर जोर देता है। पूर्ण निर्णय सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध है।