सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: वकीलों को मनमाने सम्मन से मिली सुरक्षा

वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन
# सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: वकीलों को मनमाने सम्मन से मिली सुरक्षा
**नई दिल्ली, 31 अक्टूबर 2025** 
सुप्रीम कोर्ट ने आज वकीलों के खिलाफ जांच एजेंसियों द्वारा मनमाने ढंग से जारी किए जा रहे सम्मन पर रोक लगा दी। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि किसी वकील को केवल इसलिए तलब नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने अपने मुवक्किल को कानूनी सलाह दी या उसका प्रतिनिधित्व किया। यह फैसला *इन रे: सम्मनिंग एडवोकेट्स हू गिव लीगल ओपिनियन* मामले में आया, जिसे कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया था।
तीन जजों की पीठ—मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया—ने कहा कि वकील-मुवक्किल गोपनीयता (एटॉर्नी-क्लाइंट प्रिविलेज) संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। मनमाना सम्मन न केवल वकीलों के पेशे पर ठंडक डालता है, बल्कि आरोपी के निष्पक्ष मुकदमे के अधिकार को भी प्रभावित करता है।
### मुख्य निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों—जैसे ईडी और सीबीआई—के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए। अब वकील को तलब करने से पहले निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी होंगी:
– **सामान्य नियम**: वकील को कानूनी सलाह या प्रतिनिधित्व के लिए कभी तलब नहीं किया जाएगा। यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 126 (अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 126) का उल्लंघन है।
– **अपवाद केवल स्पष्ट कारण से**: सम्मन तभी जारी होगा जब वकील अपराध का गवाह हो, दस्तावेज तैयार करने में धोखाधड़ी शामिल हो या संवाद पेशेवर उद्देश्य से बाहर हो। अपवाद स्पष्ट रूप से लिखित में बताना अनिवार्य है।
– **वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति**: ईडी/सीबीआई में निदेशक या आयुक्त स्तर के अधिकारी की लिखित पूर्वानुमति जरूरी। कोई जूनियर अधिकारी स्वतंत्र रूप से कार्रवाई नहीं कर सकेगा।
– **डिजिटल उपकरणों की जब्ती**: वकील के फोन/लैपटॉप जब्त होने पर उन्हें तुरंत क्षेत्रीय ट्रायल कोर्ट में पेश करना होगा। अनलॉकिंग वकील, मुवक्किल और उनके चुने हुए डिजिटल विशेषज्ञों की मौजूदगी में होगी। आपत्तियों पर पहले सुनवाई होगी।
– **प्रश्नों की सीमा**: पूछताछ केवल संबंधित मामले तक सीमित रहेगी। अन्य मुवक्किलों की गोपनीयता बरकरार रखनी होगी—कोई मछली पकड़ने की कार्रवाई नहीं।
– **दस्तावेज पेश करना**: आपराधिक मामलों में धारा 165 बीएसए, सिविल में सीपीसी की धारा 16 नियम 7 के तहत। कोर्ट पहले आपत्तियां सुनेगा, फिर स्वीकार्यता तय करेगा।
– **न्यायिक समीक्षा**: कोई भी सम्मन तत्काल बीएनएसएस की धारा 528 के तहत चुनौती दी जा सकती है—वकील या मुवक्किल द्वारा।
### पृष्ठभूमि
यह मामला तब शुरू हुआ जब ईडी ने वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार और प्रताप वेणुगोपाल को उनके मुवक्किलों को दी गई सामान्य कानूनी सलाह के लिए तलब किया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने इसका कड़ा विरोध किया। कोर्ट ने उन सम्मनों को रद्द कर दिया और इसे कार्यकारी अतिक्रमण बताया।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की दलीलें भी सुनी गईं।
### प्रभाव
यह फैसला बार की स्वतंत्रता को मजबूत करता है और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाता है। कानूनी विशेषज्ञ इसे “लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर” बता रहे हैं। बार एसोसिएशनों ने इसे पेशेवर गरिमा की जीत बताया।
एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी यह खबर ट्रेंड कर रही है। लाइव लॉ, लॉ चक्र और कई वकीलों ने इसे संविधान की रक्षा बताया है।
**पूर्ण निर्णय** सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट या लाइव लॉ पर उपलब्ध है।
 
							 
							