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दिल्ली की सड़कों पर गूंजा सामाजिक न्याय और भाषाई सशक्तिकरण का संदेश

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ब्यूरो रिपोर्ट 

नई दिल्ली -विश्व सामाजिक न्याय दिवस के मौके पर पूर्वी दिल्ली की सड़कों पर एक अनोखा नज़ारा देखने को मिला! सैकड़ों युवाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सामाजिक न्याय और भाषाई सशक्तिकरण के समर्थन में एक पैदल मार्च निकाला। इस मार्च का आयोजन ब्रिटिश लिंगुआ, जो कि अंग्रेजी संचार के लिए एक प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थान है, द्वारा किया गया था। इसका मकसद न्याय, समान अवसर और अंग्रेजी शिक्षा के महत्व को उजागर करना था।

मार्च का नेतृत्व किया प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार और सामाजिक सुधारक डॉ. बीरबल झा ने!
डॉ. झा पहले भी कई जन आंदोलनों का नेतृत्व कर चुके हैं, जिनमें शामिल हैं: नमस्ते मार्च (2020) – भारतीय पारंपरिक अभिवादन को बढ़ावा देने के लिए। अटल मार्च (2024) – पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि के रूप में। युवा मार्च (2025) – स्वामी विवेकानंद की स्मृति में। ‘इंग्लिश फॉर ऑल’ पहल (1993) – वंचित समुदायों के लिए अंग्रेजी शिक्षा को सुलभ बनाने की मुहिम।

क्या थी इस मार्च की खास बातें?
रूट: ब्रिटिश लिंगुआ से शुरू होकर लक्ष्मी नगर मेट्रो स्टेशन तक। संदेश: प्रतिभागियों ने तख्तियों पर प्रेरणादायक नारे लिखे थे। भागीदारी: सैकड़ों युवा और सामाजिक कार्यकर्ता उत्साह से शामिल हुए।

कुछ दमदार उद्धरण जो लोगों का ध्यान खींचे:
“सामाजिक न्याय सिर्फ अधिकारों की बात नहीं, बल्कि लोगों को वे औज़ार देने की बात है—जैसे अंग्रेजी—जिससे वे अपने अधिकारों का दावा कर सकें।” — डॉ. बीरबल झा
“कहीं भी अन्याय, हर जगह न्याय के लिए खतरा है।” — मार्टिन लूथर किंग जूनियर
“अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा नहीं है; यह सामाजिक न्याय और आर्थिक गतिशीलता का पासपोर्ट है।” — डॉ. बीरबल झा
“जाति और वर्ग की बेड़ियों को तभी तोड़ा जा सकता है जब शिक्षा, विशेष रूप से अंग्रेजी शिक्षा, समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे।” — ज्योतिराव फुले
“भारत में आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी सीखना अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और प्रगति के लिए एक अनिवार्यता है।” — डॉ. बी.आर. अंबेडकर

डॉ. बीरबल झा का संदेश:
मार्च के दौरान, डॉ. झा ने कहा, “भारत में सच्चे सामाजिक न्याय को हासिल करने के लिए अंग्रेजी सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। शिक्षा ही सामाजिक गतिशीलता की कुंजी है और अंग्रेजी वह साधन है जो वैश्विक अवसरों के द्वार खोलता है।”

इस मार्च ने पूरे समाज को एक सशक्त संदेश दिया:
नीति-निर्माताओं, शिक्षकों और नागरिकों को भाषाई समावेशन को प्राथमिकता देनी चाहिए। अंग्रेजी शिक्षा को एक विशेषाधिकार नहीं, बल्कि सभी के लिए समान अवसर का माध्यम बनाना चाहिए। सामाजिक न्याय को मजबूत करने के लिए भाषा की शक्ति को अपनाना होगा।

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