
वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन
*भोपाल, 24 फरवरी 2025*: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने रेत खनन से जुड़े महत्वपूर्ण नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए ठेकेदारों को बड़ी राहत प्रदान की है। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने मध्य प्रदेश सैंड (खनन, परिवहन, भंडारण एवं व्यापार) नियम, 2019 की धारा 10(3) और 12(5) को खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 15(3) के विरुद्ध बताते हुए уль्ट्रा वायर्स (अति अधिकार) घोषित कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ठेकेदारों से पूरी बोली राशि (एनुअल कॉन्ट्रैक्ट अमाउंट) वसूलना तब भी जब खदान से वास्तविक खनन कम हुआ हो या मंजूरी नहीं मिली हो, कानून के खिलाफ है।
#### मामला क्या था?
आर.के. ट्रांसपोर्ट एंड कंस्ट्रक्शन लि. सहित कई ठेकेदारों ने 11 याचिकाओं के जरिए इन नियमों को चुनौती दी थी। इन नियमों के तहत रेत खदानों की नीलामी में सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को खदान आवंटित की जाती है और उसे पूरी बोली राशि (वार्षिक अनुबंध राशि) हर साल चुकानी पड़ती है—चाहे खदान से कितना भी रेत निकाला गया हो। कई ठेकेदारों का कहना था कि प्राकृतिक कारणों, पर्यावरणीय मंजूरी में देरी या खदान में अपेक्षित रेत की मात्रा न होने से वे पूरा खनन नहीं कर पाए, फिर भी राज्य सरकार उनसे पूरी राशि की मांग कर रही थी। इसके चलते शो-कॉज नोटिस, जुर्माना और अनुबंध रद्द करने जैसी कार्रवाइयां की गईं।
#### कोर्ट ने क्या कहा?
1. *नियम असंवैधानिक क्यों?*
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार का MMDR अधिनियम, 1957 की धारा 15(3) स्पष्ट रूप से कहती है कि लघु खनिजों (जैसे रेत) पर रॉयल्टी या डेड रेंट (जो भी अधिक हो) केवल उतनी मात्रा पर लगाया जा सकता है जो वास्तव में खदान से निकाली या उपभोग की गई हो। राज्य सरकार को धारा 15(1) के तहत नियम बनाने का अधिकार है, लेकिन यह नियम मूल अधिनियम की धारा 15(3) की सीमा से बंधा है। विवादित नियम 10(3) और 12(5) इस सीमा को लांघते हैं क्योंकि ये वास्तविक खनन से अलग एक निश्चित राशि की वसूली की अनुमति देते हैं। कोर्ट ने इसे डेलिगेटेड लेजिस्लेशन का दुरुपयोग माना।
2. *एस्टॉपेल का सिद्धांत लागू नहीं*
राज्य सरकार ने दलील दी कि ठेकेदारों ने खुद टेंडर में भाग लिया और नियमों को स्वीकार किया, इसलिए अब वे इन नियमों को चुनौती नहीं दे सकते (एस्टॉपेल का सिद्धांत)। कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि कानून या संविधान के खिलाफ कोई एस्टॉपेल नहीं चल सकता। अगर अधीनस्थ विधान (नियम) मूल कानून से असंगत है तो उसे किसी ने भी पहले मान लिया हो, फिर भी उसकी वैधता पर सवाल उठाया जा सकता है।
3. *वार्षिक अनुबंध राशि = रॉयल्टी जैसी*
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि टेंडर से तय होने वाली यह “वार्षिक अनुबंध राशि” खनिज अधिकारों के उपयोग के बदले दी जाने वाली राशि है और यह रॉयल्टी या डेड रेंट के समान ही है। इसे मूल अधिनियम की सीमाओं से अलग नहीं रखा जा सकता।
4. *परिणामी राहत*
कोर्ट ने सभी विवादित शो-कॉज नोटिस, दंडात्मक कार्रवाइयों और अनुबंध रद्द करने के आदेशों को रद्द कर दिया। हालांकि, राज्य सरकार को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह वैध प्रावधानों के अनुसार वास्तव में निकाली गई रेत की मात्रा के आधार पर नई मांग पत्र जारी कर सकती है।
#### प्रभाव क्या होगा?
इस फैसले से प्रदेश में सैकड़ों रेत ठेकेदारों को राहत मिलेगी जो पूरी बोली राशि नहीं चुका पाने की वजह से परेशान थे। साथ ही, भविष्य में रेत खनन नीतियों में बदलाव की संभावना बढ़ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य सरकार को अब नए नियम बनाने पड़ सकते हैं जो केंद्र के MMDR अधिनियम के पूरी तरह अनुरूप हों।
यह फैसला रेत खनन क्षेत्र में पारदर्शिता और न्यायसंगत वसूली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने की, जबकि राज्य की ओर से एडवोकेट जनरल उपस्थित हुए।




