
वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: अवैध खनन मामलों में जब्त वाहनों को लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखना उचित नहीं, सुपुर्दनामा पर रजिस्टर्ड मालिक को मिल सकती है अंतरिम रिहाई
*बिलासपुर, 17 नवंबर 2025 (अपडेट: 16 दिसंबर 2025)*: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अवैध खनन मामलों में जब्त वाहनों के रखरखाव और रिहाई को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने स्पष्ट किया कि जब्त वाहनों को लंबे समय तक पुलिस थाने के खुले परिसर में रखना उचित नहीं है, क्योंकि इससे वाहन मौसम की मार से खराब हो जाते हैं और उनका मूल्य घटता है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के स्थापित सिद्धांतों को बरकरार रखते हुए निर्देश दिया कि ऐसे वाहनों को उचित सुरक्षा उपायों के साथ रजिस्टर्ड मालिक को सुपुर्दनामा (अंतरिम हिरासत) पर रिहा किया जा सकता है।
#### मामला क्या था?
केस नंबर CRMP No. 3456 of 2025 में याचिकाकर्ता प्रमोद कुमार ने अपनी ट्रॉली (रजिस्ट्रेशन नंबर CG-11-AR-5734) की अंतरिम रिहाई की मांग की थी। यह वाहन 16 जून 2025 को अवैध रेत परिवहन के आरोप में जब्त किया गया था। पुलिस स्टेशन चकरभाठा में क्राइम नंबर 249/2025 दर्ज हुआ, जिसमें खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 4(1), 4(1)(A) और 21 तथा भारतीय न्याय संहिता, 2023 की संबंधित धाराएं लगाई गईं।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह वाहन का रजिस्टर्ड मालिक है और इसे कृषि एवं घरेलू कार्यों (केंद्र सरकार की योजना के तहत घर निर्माण के लिए रेत ढोने) के लिए उपयोग करता है। उसके पास वैध मिनरल ट्रांजिट पास भी था। वाहन खुले में रखे जाने से उसकी हालत बिगड़ रही थी। स्पेशल जज (माइंस एंड मिनरल्स एक्ट), बिलासपुर ने 23 सितंबर 2025 को सुपुर्दनामा आवेदन खारिज कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
#### कोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए याचिका मंजूर कर ली और वाहन की अंतरिम रिहाई के निर्देश दिए। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दो प्रमुख फैसलों का हवाला दिया:
1. *सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (2002) 10 SCC 283*:
– Magistrates को जब्त संपत्ति की रिहाई के लिए शीघ्र एवं न्यायोचित आदेश पारित करने चाहिए।
– वाहनों को लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता; मालिक को नुकसान, वाहन खराब और पुलिस/कोर्ट पर बोझ।
– पंचनामा तथा फोटोग्राफ्स से सबूत सुरक्षित रखा जा सकता है।
2. *मुल्तानी हनीफभाई कलुभाई बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (2013) 3 SCC 240*:
– जब्त वाहनों को खुले में रखना उचित नहीं; मौसम से क्षय होता है।
कोर्ट ने कहा कि MMDR एक्ट के मामलों में भी ये सिद्धांत लागू होते हैं। निचली अदालतों को इन बाइंडिंग प्रेसिडेंट्स का पालन अनिवार्य है। रिहाई से पहले स्वामित्व सत्यापन, पंचनामा, फोटोग्राफ्स और उचित सुरक्षा (पर्सनल बॉन्ड एवं surety) जरूरी है।
#### अधिवक्ता भारत सेन की प्रतिक्रिया
अवैध खनन एवं जब्ती मामलों में सक्रिय वरिष्ठ अधिवक्ता भारत सेन ने इस फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा, “यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के सुंदरभाई देसाई और मुल्तानी हनीफभाई के सिद्धांतों को न केवल पुनर्जीवित करता है, बल्कि उन्हें एक शक्तिशाली हथियार बनाता है। अवैध खनन के नाम पर निर्दोष नागरिकों की आजीविका छीनना, उनके वाहनों को जानबूझकर बर्बाद करना और वर्षों तक मनमानी हिरासत रखना घोर अत्याचार है। हाईकोर्ट ने साफ चेतावनी दी है कि सबूत सुरक्षित रखते हुए सुपुर्दनामा पर रिहाई अब अपरिहार्य है। यह निर्णय पुलिस और निचली अदालतों को कड़ा संदेश देता है कि दमन और मनमानी की नीति अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इससे लाखों किसानों, ठेकेदारों और आम लोगों को सच्चा न्याय मिलेगा और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा होगी।”
#### प्रभाव और महत्व
इस फैसले से अवैध खनन या संबंधित मामलों में जब्त हजारों वाहनों के मालिकों को राहत मिलेगी। अक्सर ऐसे वाहन वर्षों तक पुलिस हिरासत में पड़े रहते हैं, जिससे वे बेकार हो जाते हैं। कोर्ट ने निचली अदालतों को याद दिलाया कि सुप्रीम कोर्ट के स्थापित सिद्धांतों का पालन बाध्यकारी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला राज्य में अवैध खनन रोकथाम और मालिकों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाएगा। साथ ही, पुलिस और अदालतों पर अनावश्यक बोझ कम होगा।





