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पांच दिवसीय सामवेद परायण यज का हुआ समापन,21 सौ मंत्रो से यजमानों ने दी आहुतियां

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ब्यूरो रिपोर्ट 

सारनी। पांच दिवसीय सामवेद परायण यज का शुक्रवार समापन हुआ। सामवेद के 21 सौ मंत्रो से यज में उपस्थित यजमानों ने आहुतियां दी।
सामवेद यज 10 मार्च फागुन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को सुबह 7 बजे से शुरु हुआ था।
यज में सुबह-शाम 250 वेद मंत्रों से आहुतियां दी गई।
यज में 20 किलो घी और 50 किलो हवन सामग्री का उपयोज किया गया।

यज करवाने वाले दिनेश आर्य ने बताया कि सबसे श्रेष्ठ कर्म यज को माना गया है। यज करने से घरों में सुख-शांति का वातारण बना रहता है,साथ ही मनुष्य के अंदर ईश्वर की सत्य वाणी ग्रहण करने और सत्य मार्ग में चलने की प्रेरणा मिलती है। इसलिए हम सभी को अपने-अपने घरों में देव यज करना चाहिए।
नगर पालिका क्षेत्र के वार्ड पांच शिवाजी ग्राउंड स्थित संतोष साहू के निवास में आयोजित सामवेद यज में वेद मंत्रो के उच्चारण के साथ एक स्वर में स्वाहा बोलकर आहुतियां दी गई।
आर्य समाजियों द्वारा प्रति दिन वैदिक यज बीते 20 सालों से निरंतर जारी है। यज का उद्देश्य सत्य मार्ग में चलने के साथ आमजनों का कल्याण की कामना को जन-जन तक पहूंचाना है।उन्होंने बताया कि पांच दिवसीय यज में सामवेद से दी गई आहुतियों से वायुमंडल शुध्द होता है।यज करने और यज शाला के करीब बैठने से की बीमारियों का अंत हो जाता है। उन्होंने बताया कि मनुष्य ईश्वर को केवल वेंदो के माध्यम से ही जान सकता है,क्यो की वेद ईश्वर की वाणी है,इसमें किसी को छोटा-बड़ा नहीं कहा गया है। वेद में ईश्वर को पाने के तमाम उपायों का समावेश है। इसलिए हर हिंदुओं के घरों में वेद पुस्तक का होना अति आवश्यक है।


सामवेद परायण यज में सुबह-शाम 250-250 मंत्रो से हवन सामग्री के साथ घृत की आहुतियां दी गई।
पांच दिवसीय यज का समापन शुक्रवार धुरेड़ी की शाम की मधुर वेला में हुआ।
आर्य समाज के संथापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कृण्वंतो विश्वमार्यम अर्थात सारे संसार को श्रेष्ठ बनाओ, यह सिद्धांत वसुधैव कुटुंबकम् का ही अगला चरण है।सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो।स्वामी दयानंद सरस्वती के अंतिम शब्द थे, प्रभु तूने अच्छी लीला की, आपकी इच्छा पूर्ण हो।
उन्होंने कहा कि यज करने से दूषित वायुमंडल शुध्द होने के साथ अच्छी बरसात होती है,अच्छी बरसात होने से अनाज की उपज की क्षमता बढ़ने से समस्त जीवधारी को भोजन के लिए अन्य मिलता है।
यज करने से ज्ञान की प्राप्ति भी होती है ज्ञान होने से इंसान गलत रास्तों पर भटकता नहीं है।
पूर्ण आहुति देकर सामवेद परायण यज का समापन पश्चात ईश्वर की प्राथना कर शांति पाठ किया गया।

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