नसरूद्दीन शाह, ओम पुरी के जूनियर और राज बब्बर के बैचमेट अरुण अवस्थी एनएसडी में प्रदेश के पहले नेशनल स्कॉलर!!
नसरूद्दीन शाह, ओम पुरी के जूनियर और राज बब्बर के बैचमेट अरुण अवस्थी एनएसडी में प्रदेश के पहले नेशनल स्कॉलर!!
बैतूल। बड़े भैया..यह बैतूल के रंगमंच का वह धूमकेतु जो एनएसडी में भी अपनी चमक बिखेर चुका। एनएसडी में जिनके बैचमेट में राज बब्बर, रोहणी हटँगनी जैसे बड़े नाम और सीनियर में नसरूद्दीन शाह और ओमपुरी जैसे कलाकारों का नाम है।* वैसे बैतूल की पुरानी पीढ़ी में बड़े भैया के नाम से खासे लोकप्रिय रहे अरुण अवस्थी की कबालियत और शख्सियत से नई पीढ़ी परिचित नही है। वे बैतूल की नाट्यकला के सबसे बड़े सितारे है और एनएसडी जैसी संस्थान से प्रशिक्षित रंगकर्मी है।
वे मध्यप्रदेश के पहले ऐसे एनएसडी के छात्र रहे जिन्हें राष्ट्रीय स्तर की स्कालरशिप मिली थी। मालगुजार अवस्थी परिवार के चन्दरमूल अवस्थी और शांति देवी अवस्थी के घर 1948 मे अरुण अवस्थी का जन्म हुआ। उनकी स्नातक स्तर की शिक्षा दिक्षा बैतूल के स्कूल कालेज में हुई। कला के प्रति लगाव उन्हें अपनी माँ से विरासत में मिला। उनकी माँ शांति देवी की शिक्षा बनारस में एनिबिसेन्ट के बसन्त आश्रम से हुई और उनकी क्लासमेट राजमाता सिंधिया रही है। अरुण अवस्थी की माता जी स्वयं शास्त्रीय नृत्य में पारंगत थी और उस दौर में बैतूल के नृत्य कला को बढ़ावा देने हर सम्भव मदद करती थी।
अरुण अवस्थी का 1971 में एनएसडी के लिए चयन हुआ और वे पूरे तीन साल वहां रहे पर उन्होंने डिग्री नही ली। अरुण अवस्थी के जानने वालों का कहना कि अरुण अवस्थी अखड्ड स्वभाव और बेफिक्रे अंदाज उन्हें औरों से अलग बनाता है वही उनके की सफलता में भी बाधक बनता है। स्पष्ट और मुंह पर ही बोल देने की आदत ऐसी रही कि एनएसडी में अपने पहले प्ले सूर्यमुख में कास्ट्यूम का लेकर डायरेक्टर से ही भिड़ गए और उसे मनवा कर ही छोड़ा की उस प्ले के लिए वह कास्ट्यूम सही नही। खैर अरुण अवस्थी को एनएसडी में रहते ही शशि कपूर के साथ फ़िल्म सिद्धार्थ भी ऑफर हुई पर स्कॉलर की शर्तों के कारण काम नही कर पाए। डायरेक्टर इब्राहिम अलकाजी के मार्गदर्शम में तीन साल रंगमंच की हर विधा में अपने आप को मांजने के बाद अचानक एनएसडी से मोह भंग हो गया तो बिना डिग्री लिए ही छोड़कर चले आए। फिर बैतूल में प्ले करने लगे। जिसमे कलेक्ट्रेट के खुले प्रांगण में अंधायुग का मंचन उस दौर का सबसे लोकप्रिय नाटक रहा।
फिर बड़े भैया की वजह से ही बैतूल में पहली बार कोई शूटिंग हुई। आलोक नाथ और राजा बुंदेला जैसे कलाकारो के साथ बूंद बूंद सीरियल की शूटिंग बैतूल में हुई। इसमे अरुण अवस्थी ने भी एक महत्वपूर्ण क्रिरदार निभाया। वे जहीन व्यक्ति है आज भी वे हर मुद्दे पर तर्क संगत बात करते है। 72 साल की उम्र में उनके अंदर का कलाकार एनएसडी और रंगमंच के उस दौर की हर स्मृति को संजोए हुए है।
उनके करीबी मित्र रहे कई लोगो का मानना है कि अरुण ने अपनी प्रतिभा का सही दोहन नही किया इसलिए वे नसरूद्दीन शाह, ओमपुरी या राज बब्बर की तरह सफलता हासिल नहीं कर पाए। घर की सम्पन्नता मस्त और फक्कड़ स्वभाव ने उन्हें बैतूल में रोके रखा। बैतूल में जैसी जगह रंगमंच के लिए कोई प्लेटफार्म ही नही था।
यह बैतूल है यह प्रतिभाओं का खजाना रहा पर अफसोस यह है कि यह प्रतिभाए अपने साथ ही सही न्याय कर मील का पत्थर नही बन पाई। जो भी हो पर यह लोग बैतूल के सुनहरे इतिहास के सुपरस्टार तो है ही , जिनसे आप कोई सबक या प्रेरणा भले ही न ले पर इन पर गर्व जरूर कर सकते है…