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संघ नींव में ज्ञात-अज्ञात विसर्जित पुष्प स्व दत्तोपंत जी ठेंगड़ी -14 अक्टूबर पुण्य तिथी के अवसर पर

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अंबादास सूने सारनी

सारनी—- भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत जी ठेंगड़ी का जन्म 10 नवम्बर 1920 कार्तिक अमावस्या दीपावली के दिन आर्वी जिला वर्धा महाराष्ट्र में हुआ था। बचपन से ही स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रहे दत्तोपंत जी । वानरसेना के आर्वी तहसील के अध्यक्ष भी थे। जब उनका सीधा सम्पर्क संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी से हुआ तो संघ के विचार से प्रभावित होकर जीवन पर्यंत संघ के हो गये। पिता बापूराव जी उन्हें वकील बनाना चाहते थे किंतु दत्तोपंत जी एम.ए. तथा एल.एल.बी. की शिक्षा पूर्ण कर 1941 में संघ प्रचारक बने। सर्वप्रथम उन्हें दक्षिण में केरल में कालीकट भेजा गया जहां उन्होंने संघ कार्य के साथ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का भी कार्य किया। केरल के पश्चात उन्हें पश्चिम बंगाल और फिर असम भेजा गया। उक्त विचार अंबादास सूने ने एक विशेष भेंट में बताया। सन 1985 से भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध सतपुडा बिजली कर्मचारी संघ सारनी के सदस्य से लेकर सचिव रहते विद्युत गृह में कार्य प्रारम्भ किया। श्री सूने ने बताया कि परम पूज्यनीय श्री गुरुजी के कहने पर दत्तोपंत जी ने मजदूर क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम उन्होंने इंटक और शेतकारी कामगार फेडरेशन में कार्य सीखा। पेंच कन्हान एरिया में भी ठेंगड़ी जी ने कार्य किया और साम्यवादी विचार के खोखलेपन को भी जाना और अंतत: उन्होंने “भारतीय मजदूर संघ” नानपालिटिकल ट्रेड यूनियन की स्थापना लोकमान्य तिलक और भारत माता के सपूत चंद्रशेखर आजाद के जन्म दिवस 23 जुलाई 1955 को भोपाल के अग्रवाल धर्मशाला प्रारम्भ किया जो आज देश का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है। उन्होंने उद्योग एक परिवार का विचार दिया जिसमें उद्योगपति एवं श्रमिक मिलकर कार्य करते है। वामपंथियों के नारे से अलग नारे बनाये जो भारत की दृष्टि को परीलक्षित करते है। वामपंथी कहते हैं दुनिया के मजदूरों एक हों मजदूर संघ ने नारा दिया मजदूरों दुनिया को एक करों। वामपंथियों का एक ओर नारा है चाहे जो मजबूरी हो, हमारी मांगे पूरी हो, मजदूर संघ ने नारा दिया देश के हित में करेंगे काम, काम के लेंगे पुरे दाम। कम्युनिस्टों का एक ओर नारा है कमाने वाला खायेगा, मजदूर संघ ने नारा दिया कमाने वाला खिलाएगा । इन विचारों से भारत में सम्पूर्ण मजदूर जगत का दृश्य ही बदल गया। अब 17 सितम्बर को राष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में विश्वकर्मा जयन्ती देश में मनाई जाती है। भारत में अभी भी वामपंथ और कांग्रेस समर्थित संगठन 1 मई को श्रमिक दिवस मनाते हैं। मजदूर क्षेत्र में आने के बाद दत्तोपंत जी ने राजनीति से दूरी बना ली। स्व दत्तोपंत जी ठेंगड़ी 1964 से 1976 तक राज्यसभा में मजदूर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। सभी देशों की यात्रा में मजदूर आन्दोलन के साथ-साथ वहां की सामाजिक स्थिति का अध्ययन भी करते थे। यही कारण रहा है कि चीन और रूस जैसे साम्यवादी देश भी उनसे श्रमिक समस्याओं पर विचार विमर्श करते थे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, सर्व पंथ समादर मंच की स्थापना की।
2002 में सरकार द्वारा दिये जा रहे पद्मभूषण अलंकरण को उन्होंने अस्वीकार कर दिया, जब तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी एवं श्री गुरुजी को भारत रत्न नहीं दिया जाता , तब तक वे कोई अलंकरण स्वीकार नहीं करेंगे।अंबादास सूने ने बताया कि स्व ठेंगड़ी जी का सदैव सकारात्मक संपर्क बना रहा। अनेक भाषाओं के जानकार श्री ठेंगड़ी जी हिन्दी में 28, अंग्रेजी में 12 तथा मराठी में 3 पुस्तकें लिखी। इन पुस्तकों में लक्ष्य और कार्य, एकात्म मानवदर्शन, ध्येयपथ, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर, श्रम दिवस, कम्युनिज्म अपनी ही कसौटी पर, संकेत रेखा, थर्ड वे आदि प्रमुख हैं। ठेंगड़ी जी द्वारा लिखित कार्यकर्ता नामक पुस्तक सभी कार्यकर्ताओं को बार-बार पढना ही चाहिये। ऐसे हमारे श्रेष्ठ दत्तोपंतजी ठेंगड़ी जी ने 14 अक्टूबर 2004 को पूणे के भारतीय मजदूर संघ कार्यालय में पार्थिव शरीर का त्याग किया। इस प्रकार एक ओर वरिष्ट ज्येष्ठ श्रेष्ठ पुष्प संघ नींव में विसर्जित हुआ। उनकी प्रेरणा से आज भी मजदूर क्षेत्र में कार्य करते हुए उन्हे श्रध्दांजलि अर्पित करते हैं।