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2025 में सर्वोच्च न्यायालय का वसीयत कानूनों पर क्रांतिकारी फैसला: रजिस्टर्ड वसीयतों की वैधता मजबूत, चुनौती देने वालों पर बोझ

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वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन 

*नई दिल्ली, 14 अक्टूबर 2025*: वर्ष 2025 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वसीयत (Will) से संबंधित कानूनों पर कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं, जो उत्तराधिकार विवादों को कम करने और रजिस्टर्ड वसीयतों की प्रामाणिकता को मजबूत करने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं। ये निर्णय मुख्य रूप से भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act) की धारा 63 और 67 तथा साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Evidence Act) की धारा 68 पर केंद्रित हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि रजिस्टर्ड वसीयत को चुनौती देना आसान नहीं है, और नई मुद्दों को अपील में पेश करने पर सख्ती बरती जाएगी। आइए, इन प्रमुख फैसलों की विस्तृत समीक्षा करें।

#### 1. *रजिस्टर्ड वसीयत की प्रामाणिकता पर अनुमान: मेटापल्ली लसुम बाई बनाम मेटापल्ली मुतैया (21 जुलाई 2025)*
आंध्र प्रदेश के दासनापुर गांव में 4 एकड़ 16 गुंटा कृषि भूमि को लेकर चला विवाद इस फैसले का आधार बना। मेटापल्ली राजन्ना (1983 में मृत्यु) की दूसरी पत्नी लसुम बाई ने दावा किया कि राजन्ना ने 24 जुलाई 1974 को रजिस्टर्ड वसीयत (एक्सटेंशन-ए1) बनाई थी, जिसमें संपत्ति का बंटवारा किया गया—उन्हें उत्तरी भाग (6 एकड़ 16 गुंटा), सौतेले बेटे मुतैया को दक्षिणी भाग। मुतैया ने वसीयत को जाली बताते हुए इसे संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति करार दिया।

ट्रायल कोर्ट ने लसुम बाई के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने मुतैया को 1/4 हिस्सा देते हुए वसीयत को सीमित कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल करते हुए कहा कि रजिस्टर्ड वसीयत में वैधता का मजबूत अनुमान लगाया जाता है, और चुनौती देने वाले पर ही इसे असिद्ध करने का बोझ होता है। मुतैया राजन्ना के हस्ताक्षर स्वीकार कर चुका था, और लसुम बाई का लंबे समय से कब्जा तथा राजस्व रिकॉर्ड ने वसीयत की पुष्टि की। न्यायमूर्ति की बेंच ने जोर दिया कि मौखिक पारिवारिक समझौता भी कब्जे और स्वीकारोक्ति से वैध हो सकता है। इस फैसले से रजिस्टर्ड वसीयतों की मजबूती बढ़ी है, और फर्जी चुनौतियों पर अंकुश लगेगा।

#### 2. *वसीयत सिद्ध करने पर नई मुद्दे पेश करने की सीमा: सी.पी. फ्रांसिस बनाम सी.पी. जोसेफ (3 सितंबर 2025)*
केरल के एरनाकुलम जिले में एलमकुलम गांव की संपत्ति (प्लेंट ए शेड्यूल: 7.875 सेंट, बी शेड्यूल: 3.233 सेंट) को लेकर चला यह विवाद संयुक्त वसीयत पर केंद्रित था। सी.आर. पियस और फिलोमिना पियस ने 27 जनवरी 2003 को रजिस्टर्ड संयुक्त वसीयत (एक्सिबिट बी-3) बनाई, जिसमें ए शेड्यूल सी.पी. फ्रांसिस को और बी शेड्यूल अन्य बच्चों को दी गई, साथ ही अन्य वारिसों को नकद राशि (जैसे 1 लाख रुपये प्रत्येक) का प्रावधान। साक्षी में फ्रांसिस की पत्नी पॉन्सी (डीडब्ल्यू-5) शामिल थीं।

अन्य बच्चे (रिस्पॉन्डेंट्स) ने वसीयत को अमान्य बताते हुए विभाजन का मुकदमा दायर किया, दावा किया कि टेस्टेटर्स की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी और अनुचित प्रभाव था। ट्रायल और पहली अपीलीय अदालत ने वसीयत को वैध माना, लेकिन केरल हाईकोर्ट ने दूसरी अपील में धारा 67 (साक्षी को लाभ देने वाली वसीयत अमान्य) का नया मुद्दा उठाते हुए इसे रद्द कर दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। अदालत ने कहा कि दूसरी अपील (सीपीसी धारा 100) में नया मुद्दा पेश करना असाधारण है, और यह प्लेडिंग्स या निचली अदालतों के फैसलों पर आधारित होना चाहिए। यहां धारा 67 पर कोई पूर्व सुझाव या सबूत नहीं था, इसलिए हाईकोर्ट ने नया केस जन्म दिया। न्यायालय ने वसीयत को बहाल किया और टेस्टेटर्स की इच्छा का सम्मान किया। साथ ही, अन्य वारिसों को बढ़ी हुई राशि (जैसे 10 लाख रुपये) का भुगतान निर्देशित किया। यह फैसला अपील प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।

#### 3. *संपत्ति हस्तांतरण पर सीमाएं: रमेश चंद बनाम सुरेश चंद (1 सितंबर 2025)*
उत्तर प्रदेश में संपत्ति विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि बिक्री समझौता, सामान्य वकील पूर्र ऑफ अटॉर्नी (जीपीए) या वसीयत से अचल संपत्ति का पूर्ण हस्तांतरण नहीं हो सकता। मामले में रमेश चंद ने जीपीए और वसीयत के आधार पर मालिकाना हक दावा किया, लेकिन अदालत ने ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 54 का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार किया। यह फैसला वसीयतों को संपत्ति बिक्री के विकल्प के रूप में सीमित करता है, और केवल पंजीकृत डीड से ही वैध हस्तांतरण मानता है।

#### 4. *अन्य महत्वपूर्ण फैसले और प्रभाव*
– *2025 आईएनएससी 485 (15 अप्रैल 2025)*: वसीयत और कॉडिसिल की जानकारी के आधार पर मुकदमे की वैधता पर जोर, जहां प्लेंटिफ ने खुद डिफेंडेंट्स से जानकारी प्राप्त की थी।
– *अनुसूचित जनजातियों पर उत्तराधिकार अधिनियम की लागूता (17 जुलाई 2025)*: अनुसूचित जनजाति सदस्यों पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू नहीं होता, लेकिन वसीयत मामलों में रीति-रिवाजों की जांच जरूरी।

ये फैसले संपत्ति कानून को मजबूत कर रहे हैं, खासकर महिलाओं और प्राकृतिक वारिसों के अधिकारों की रक्षा में। 2025 में सर्वोच्च न्यायालय ने 10 से अधिक वसीयत-संबंधी मामलों पर फैसला दिया, जो विवादों को 20% तक कम करने में मददगार सिद्ध हो सकते हैं।

### वसीयत कानून पर व्यावहारिक सलाह: 2025 के फैसलों के प्रकाश में
इन फैसलों से प्रेरित होकर, यहां कुछ सलाह दी जा रही है। कानूनी सलाह के लिए वकील से संपर्क करें।

#### *वसीयत कैसे बनाएं?*
– *पंजीकरण अनिवार्य*: रजिस्टर्ड वसीयत वैधता का अनुमान देती है। दो साक्षियों के साथ सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में करवाएं।
– *स्पष्ट प्रावधान*: सभी वारिसों का उल्लेख करें, लाभार्थी को संदेह न हो। मानसिक स्वास्थ्य प्रमाण संलग्न करें।
– *साक्षी चयन*: स्वतंत्र साक्षी चुनें; लाभार्थी या रिश्तेदार से बचें (धारा 67 के तहत)।
– *संयुक्त वसीयत*: पति-पत्नी के लिए उपयोगी, लेकिन रद्द न करने पर वैध रहती है।

#### *वसीयत को कैसे चुनौती दें?*
– *बोझ सिद्ध करें*: रजिस्टर्ड वसीयत के खिलाफ संदिग्ध परिस्थितियां (जैसे अनुचित प्रभाव) साबित करें।
– *अपील में सतर्कता*: नया मुद्दा प्लेडिंग्स पर आधारित हो; अन्यथा खारिज।
– *समय सीमा*: लिमिटेशन एक्ट के तहत 3 वर्ष में मुकदमा दायर करें।
– *परिवारिक समझौता*: मौखिक भी वैध, लेकिन कब्जे से सिद्ध करें।

#### *सामान्य टिप्स*
– *महिलाओं/ट्राइबल के लिए*: समान उत्तराधिकार अधिकार सुनिश्चित; रीति-रिवाजों पर संवैधानिक जांच।
– *विवाद रोकें*: संपत्ति बंटवारा पहले कर लें; जीपीए से पूर्ण हस्तांतरण न मानें।
– *सहायता*: लीगल एड या बार काउंसिल से मदद लें।