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बैंकों को ‘गुंडागर्दी’ से उगाही का रास्ता बंद, सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी

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लेखक: Bharat Sen Advocate ** 

कवर स्टोरी: 18 साल पुराना मील का पत्थर – आईसीआईसीआई बैंक बनाम प्रकाश कौर: बैंकों को ‘गुंडागर्दी’ से उगाही का रास्ता बंद, सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी आज भी गूंज रही!

**नई दिल्ली, 9 दिसंबर 2025 (स्पेशल रिपोर्ट)**
**लेखक: Bharat Sen Advocate **

आज के डिजिटल युग में जब बैंकिंग ऐप्स और ऑनलाइन लोन की दुनिया हावी है, वहां भी ऋण वसूली की पुरानी कुरीतियां कभी-कभी सिर उठाती हैं। लेकिन 18 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे फैसले से पूरे बैंकिंग सेक्टर को आईना दिखाया था, जो आज भी प्रासंगिक है। 2007 (2) एससीसी 711 में आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड बनाम प्रकाश कौर एवं अन्य मामले में न्यायालय ने साफ कहा: “बैंकों को ऋण वसूली के नाम पर गुंडों की मदद लेने या जबरदस्ती का सहारा लेने का कोई हक नहीं।” यह फैसला न केवल एक महिला की पीड़ा का अंत था, बल्कि पूरे वित्तीय तंत्र में कानूनी नैतिकता की नींव रख गया। आज, जब एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) की समस्या फिर से उभर रही है, यह फैसला बैंकों के लिए चेतावनी का स्वर बना हुआ है।

#### पृष्ठभूमि: एक ट्रक लोन का सपना, जो डरावनी रातों में बदल गया
कहानी 2000 के दशक की है, जब उत्तर प्रदेश की रहने वाली प्रकाश कौर ने इलाहाबाद शाखा से आईसीआईसीआई बैंक से एक ट्रक खरीदने के लिए लोन लिया। ट्रक चला, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। किसानी और परिवहन के कारोबार में नुकसान हुआ, और किस्तें चुकाना मुश्किल हो गया। डिफॉल्ट होने पर बैंक ने रिकवरी एजेंट्स को मैदान में उतार दिया। इन एजेंट्स ने कथित तौर पर रात के अंधेरे में प्रकाश कौर के घर पर धावा बोला, उन्हें धमकियां दीं, अपशब्द कहे, और ट्रक जब्त कर लिया। प्रकाश कौर ने दावा किया कि एजेंट्स ने उनके परिवार को प्रताड़ित किया, बच्चों को डराया, और यहां तक कि महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया।

डर और मजबूरी में प्रकाश कौर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने 2006 में बैंक के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया, जिसमें आपराधिक साजिश और जबरदस्ती के आरोप लगाए गए। बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, और 26 फरवरी 2007 को न्यायमूर्ति ए.के. माथुर और मार्कंडेय काटजू की बेंच ने सुनवाई की। अदालत ने मामले की गहराई से जांच की और एक संतुलित फैसला सुनाया।

#### सुप्रीम कोर्ट का फैसला: सिविल विवाद, लेकिन गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एफआईआर दर्ज करने के आदेश को रद्द कर दिया, क्योंकि अदालत ने इसे “सिविल प्रकृति का विवाद” माना – यानी ऋण चुकौती और संपत्ति वसूली का मामला। लेकिन बैंक की वसूली की पद्धति पर कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई। फैसले में कहा गया, “हम कानून के शासन वाले देश में रहते हैं। ऋण वसूली या वाहन जब्ती केवल कानूनी साधनों से हो सकती है। बैंकों को गुंडों, ठगों या रिकवरी एजेंट्स को हायर करने का अधिकार नहीं, जो हिंसा या धमकी का सहारा लें।”

अदालत ने प्रकाश कौर को राहत देते हुए ट्रक रिलीज करने का आदेश दिया, लेकिन शर्त रखी कि वे 50,000 रुपये जमा करें और एक व्यवस्थित किस्त योजना का पालन करें। कोर्ट ने जोर दिया कि ऐसी कार्रवाइयां संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करती हैं। “बैंकिंग एक पेशेवर व्यवसाय है, न कि गुंडागर्दी का धंधा,” फैसले में टिप्पणी की गई। यह फैसला न केवल प्रकाश कौर की जीत था, बल्कि लाखों उधारकर्ताओं के लिए सुरक्षा कवच साबित हुआ।

#### वसूली की काली सच्चाई: बैंकों की पुरानी बीमारी
फैसले के समय भारत में प्राइवेट बैंक तेजी से बढ़ रहे थे, और ऋण वसूली के लिए ‘एजेंट कल्चर’ आम हो गया था। प्रकाश कौर का मामला कोई अकेला नहीं था; कई रिपोर्ट्स में उधारकर्ताओं की पिटाई, संपत्ति नुकसान और मानसिक प्रताड़ना की शिकायतें थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे राष्ट्रीय समस्या मानते हुए कहा कि बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के दिशानिर्देशों का पालन करें, जैसे सर्कुलर डीबीओडी नंबर बीसी 104/24.01.011/2008-09, जो रिकवरी एजेंट्स पर पाबंदी लगाता है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वाहन हायर-पर्चेज समझौते में डिफॉल्ट पर संपत्ति जब्ती वैध है, लेकिन प्रक्रिया कानूनी होनी चाहिए – नोटिस, कोर्ट आदेश या सिविल सूट के जरिए। हिंसक वसूली को “असंवैधानिक” करार दिया गया।

#### आज का प्रभाव: एनपीए युग में प्रासंगिकता
18 साल बाद भी यह फैसला जीवंत है। 2025 में जब बैंकिंग सेक्टर 20 लाख करोड़ के एनपीए से जूझ रहा है, कई बैंक डिजिटल रिकवरी पर शिफ्ट हो चुके हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में पुरानी प्रथाएं बनी हुई हैं। आरबीआई ने 2023 में सख्त गाइडलाइंस जारी कीं, जो इसी फैसले से प्रेरित हैं। कानूनी विशेषज्ञ डॉ. अजय मेहता कहते हैं, “आईसीआईसीआई बनाम प्रकाश कौर ने बैंकों को ‘ड्यू प्रोसेस’ सिखाया। आज कॉर्पोरेट इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) के दौर में भी, व्यक्तिगत लोन मामलों में यह मिसाल है।”

महिला अधिकार कार्यकर्ता रीता शर्मा ने कहा, “यह फैसला महिलाओं के लिए खास है, क्योंकि वसूली में लिंग-आधारित हिंसा आम थी। प्रकाश कौर की हिम्मत ने लाखों को आवाज दी।” वहीं, बैंकिंग विशेषज्ञ नेहा गुप्ता ने चेताया, “बैंकों को अब एआई-बेस्ड रिकवरी अपनानी होगी, न कि पुरानी गुंडागर्दी।”

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल एक ट्रक लौटाया, बल्कि पूरे सिस्टम को संदेश दिया: न्याय हिंसा से ऊपर है। प्रकाश कौर आज भी उत्तर प्रदेश में रहती हैं, और उनका मामला उन उधारकर्ताओं के लिए प्रेरणा है जो कर्ज के जाल में फंस जाते हैं।

यह कवर स्टोरी न केवल एक पुराने फैसले की याद दिलाती है, बल्कि आज के बैंकिंग जगत की चुनौतियों को उजागर करती है। क्या बैंकों ने सबक लिया है, या एनपीए की लहर फिर से गुंडागर्दी लाएगी? बहस जारी है।