खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957: अवैध खनिज परिवहन की समस्या और कानूनी चुनौतियाँ

वरिष्ठ अधिवक्ता भरत सेन
खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 (संक्षेप में MMDR अधिनियम) भारत में खनिज संसाधनों के नियमन का आधारभूत कानून है। यह अधिनियम अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने के लिए कड़े प्रावधान करता है। राज्य सरकारों को धारा 23सी के तहत अवैध गतिविधियों की रोकथाम के लिए नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है। मध्य प्रदेश में *मध्य प्रदेश खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भंडारण की रोकथाम) नियम* इन प्रावधानों के आधार पर बनाए गए हैं, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजिट पास (ETP) की अनिवार्यता शामिल है।
हालांकि, इन नियमों के कार्यान्वयन में कई व्यावहारिक और कानूनी समस्याएँ सामने आती हैं, विशेष रूप से वाहन खराब होने जैसी अनैच्छिक परिस्थितियों में ETP की समय सीमा समाप्त हो जाने पर। यह लेख इन मुद्दों पर चर्चा करता है और संबंधित कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
### प्रमुख कानूनी प्रावधान
1. *धारा 23सी: राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति*
MMDR अधिनियम की धारा 23सी (2000 में जोड़ी गई) राज्य सरकार को अवैध खनन, परिवहन और भंडारण की रोकथाम के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है। यह धारा स्पष्ट करती है कि राज्य सरकार अधिसूचित नियमों द्वारा परिवहन के लिए ट्रांजिट पास की व्यवस्था कर सकती है।
महत्वपूर्ण बात: ये नियम अधिनियम के मूल प्रावधानों के विरुद्ध नहीं हो सकते। यदि कोई राज्य नियम अधिनियम से अधिक कठोर या विरोधी प्रावधान करता है, तो वह विधिक चुनौती के योग्य हो सकता है।
2. *धारा 21: दंड और वसूली*
धारा 21 मुख्य रूप से अवैध उत्खनन (धारा 4 का उल्लंघन) के लिए दंड निर्धारित करती है, जिसमें कारावास और जुर्माना शामिल है। अवैध रूप से निकाले गए खनिज की कीमत, रॉयल्टी और अन्य करों की वसूली का प्रावधान भी है।
कुछ मामलों में दंड रॉयल्टी या खनिज मूल्य तक सीमित माना जाता है। मध्य प्रदेश में अवैध परिवहन के लिए रॉयल्टी की दर का 15 गुणा जुर्माना वसूलने का प्रावधान (2022 के नियमों में) कई बार धारा 21 की भावना से अधिक कठोर लगता है, क्योंकि यह दोहरे राजस्व वसूली जैसी स्थिति पैदा कर सकता है।
3. *मध्य प्रदेश के राज्य नियम*
मध्य प्रदेश खनिज (अवैध खनन, परिवहन एवं भंडारण की रोकथाम) नियम, 2006 एवं 2022 में ETP को अनिवार्य बनाया गया है। बिना वैध ETP या समय सीमा समाप्त होने पर परिवहन को अवैध माना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वाहन और खनिज की जब्ती तथा भारी जुर्माना होता है।
### व्यावहारिक समस्या: वाहन खराबी और ETP की समय सीमा
एक सामान्य स्थिति यह है कि वैध ETP के साथ खनिज लदा वाहन रास्ते में खराब हो जाता है। मरम्मत में समय लगने से ETP की निर्धारित समय सीमा (उदाहरणस्वरूप रात 11:00 बजे तक) समाप्त हो जाती है। निरीक्षण के दौरान खनिज अधिकारी वाहन जब्त कर लेते हैं, भले ही राजस्व और रॉयल्टी पहले ही अदा की जा चुकी हो।
*मुख्य प्रश्न*:
– क्या केवल समय सीमा समाप्त होने से खनिज “अवैध” हो जाता है?
– अवैध परिवहन का मूल उद्देश्य राजस्व चोरी रोकना है, लेकिन जब राजस्व पहले ही भुगतान हो चुका हो, तो क्या यह दोहरा दंड नहीं है?
एक सरल उपमा: यदि रेल भोपाल से बैतूल 11:00 बजे पहुँचने वाली हो, लेकिन देरी से 11:30 बजे पहुँचे, तो क्या यात्री की टिकट अमान्य हो जाएगी और उसे बिना टिकट का यात्री मान लिया जाएगा? इसी प्रकार, अनैच्छिक देरी (वाहन खराबी) में ETP को पूरी तरह अमान्य मानना न्यायोचित नहीं लगता।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कुछ मामलों में वाहन जब्ती पर निर्देश दिए हैं कि ETP की वैधता की जाँच की जाए और यदि मूल दस्तावेज सही पाए जाएँ, तो वाहन मुक्त किया जाए। यह दर्शाता है कि यांत्रिक रूप से समय सीमा को आधार बनाकर जब्ती करना हमेशा उचित नहीं होता।
### क्या राज्य नियम अधिनियम के विरुद्ध हैं?
धारा 23सी राज्य सरकार को नियम बनाने की शक्ति देती है, लेकिन ये नियम MMDR अधिनियम के मूल उद्देश्यों से अधिक नहीं जा सकते। यदि नियमों में 15 गुणा जुर्माना या समय सीमा की कठोर व्याख्या से खनिज कारोबारियों पर आर्थिक शोषण जैसी स्थिति बनती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 19 (व्यवसाय की स्वतंत्रता) का उल्लंघन माना जा सकता है।
खनिज कारोबारी अक्सर इन नियमों को चुनौती नहीं देते, जिससे यह स्थिति बनी रहती है। विशेषज्ञ खनिज अधिवक्ता की सहायता से विधिक प्रश्न उठाए जा सकते हैं, जैसे:
– क्या समय सीमा समाप्ति को अपवाद (वाहन खराबी) के साथ छूट दी जा सकती है?
– क्या 15 गुणा जुर्माना धारा 21 की सीमा से अधिक है?
### निष्कर्ष और सुझाव
MMDR अधिनियम, 1957 का उद्देश्य अवैध खनन और राजस्व हानि रोकना है, न कि वैध कारोबारियों को अनावश्यक परेशान करना। वाहन खराबी जैसी अपवाद स्थितियों में लचीला दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। खनिज कारोबारियों को सामान्य आपराधिक वकीलों के बजाय खनिज कानून के विशेषज्ञ अधिवक्ता नियुक्त करने चाहिए, जो विधिक बचाव और नियमों की वैधता को चुनौती दे सकें।
यदि ये मुद्दे न्यायालयों में विधिक एवं न्याय के यक्ष प्रश्नों के रूप में उठाए जाएँ, तो खनिज क्षेत्र में अधिक न्यायपूर्ण व्यवस्था स्थापित हो सकती है। यह समय है कि खनिज कारोबारी संगठित होकर इन नियमों की समीक्षा की माँग करें, ताकि कानून का उद्देश्य संरक्षण हो, शोषण नहीं।
