नये आपराधिक कानून-पुलिस की जवाबदेही -गृह राज्य मंत्री श्री बंदी संजय कुमार
ब्यूरो रिपोर्ट
गृह राज्य मंत्री श्री बंदी संजय कुमार ने बताया की भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 के प्रावधान, जिनसे पुलिस की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी है, जिसमे –
(1) बीएनएसएस की धारा 37(बी) में यह अनिवार्य किया गया है कि प्रत्येक जिले और प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक नामित पुलिस अधिकारी होगा, जो सहायक पुलिस उपनिरीक्षक के पद से नीचे का नहीं होगा, जो गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों आदि के विवरण के बारे में आम जनता को सूचना बनाए रखने और प्रदर्शित करने के लिए जिम्मेदार होगा।
(2) बीएनएसएस की धारा 82(2) में यह प्रावधान है कि जिले के बाहर निष्पादित वारंट के तहत गिरफ्तारी के मामले में, गिरफ्तारी करने वाला पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी और उस स्थान के बारे में जानकारी तत्काल नामित पुलिस अधिकारी और दूसरे जिले के ऐसे पुलिस अधिकारी को देगा जहां गिरफ्तार व्यक्ति सामान्य रूप से रहता है।
(3) बीएनएसएस की धारा 105 में प्रावधान है कि तलाशी और जब्ती की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी और पुलिस अधिकारी ऐसी ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग को बिना देरी किए जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा। बीएनएसएस की धारा 185 में यह भी प्रावधान है कि तलाशी को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिकॉर्ड किया जाएगा और ऐसे किसी भी रिकॉर्ड की प्रतियां अपराध का संज्ञान लेने के लिए अधिकृत मजिस्ट्रेट को 48 घंटे के भीतर भेजी जाएंगी।
(4) बीएनएसएस की धारा 176(2) के अनुसार पुलिस अधिकारी को हर पखवाड़े मजिस्ट्रेट को दैनिक डायरी रिपोर्ट भेजनी होगी।
(5) बीएनएसएस की धारा 176(3) के तहत सात साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के मामले में अपराध स्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य है।
(6) बीएनएसएस की धारा 193 में यह अनिवार्य किया गया है कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के मामले में पुलिस रिपोर्ट में हिरासत के क्रम का विवरण भी शामिल होना चाहिए। धारा में यह भी अनिवार्य किया गया है कि पुलिस अधिकारी को जांच के 90 दिनों के भीतर मुखबिर या पीड़ित को जांच की प्रगति के बारे में सूचित करना चाहिए। यह धारा आगे यह भी प्रावधान करती है कि आरोप पत्र दाखिल करने के बाद, यदि आगे की जांच की आवश्यकता है, तो इसे 90 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिए और 90 दिनों से अधिक समय अवधि का कोई भी विस्तार केवल न्यायालय की अनुमति से ही किया जाएगा।