मणिकर्णिका सम्मान से नवाजी जाएगी पदमश्री दुर्गा बाई-मिलेट क्वीन लहरी
गौरी बालापुरे
- मणिकर्णिका सम्मान से नवाजी जाएगी पदमश्री दुर्गा बाई-मिलेट क्वीन लहरी
- डाटर्स डे पर स्व. नेहा श्रीवास्तव की स्मृति में होगा गरिमामय आयोजन
बैतूल। आगामी 22 सितम्बर को डाटर्स डे के अवसर पर विलक्षण प्रतिभा की धनी, सफल एवं अपने कार्यों से चमत्कृत करने वाली बेटियां बैतूल पहुंच रही है। बेटी दिवस (डाटर्स डे) के अवसर पर जिले के प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ वसंत श्रीवास्तव एवं समाजसेवी एडव्होकेट नीरजा श्रीवास्तव की सुपुत्री स्व. नेहा अभिषेक श्रीवास्तव की स्मृति में बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति द्वारा 22 सितंबर को मणिकर्णिका सम्मान-2024 का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मान समारोह में जिले, प्रदेश एवं देश की 29 बेटियों को मणिकर्णिका सम्मान से नवाजा जाएगा। नेहा श्रीवास्तव की स्मृति में आयोजित डाटर्स डे के गरिमामय कार्यक्रम के मंच पर गोंडी चित्रकला के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान पूरे देश में बनाने वाली मशहूर लोक कलाकार दुर्गा बाई व्योम और मिलेट क्वीन के नाम से प्रसिद्ध लहरी बाई मणिकर्णिका सम्मान-2024 प्राप्त करेगी। कार्यक्रम संयोजक गौरी बालापुरे पदम ने बताया कि इस वर्ष आयोजन समिति द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाने वाली 29 बेेटियों को मणिकर्णिका सम्मान से नवाजा जा रहा है। श्रीवास्तव दम्पत्ति सहित कांतिशिवा मल्टी प्लेक्स के संचालक विवेक मालवी, बोथरा शॉपिंग सेंटर के संचालक धीरज बोथरा, होटल आईसीइन के संचालक अतुल गोठी, एच मार्ट अपना मार्ट संचालक धीरज हिरानी, एमपी विनियर्स प्राईवेट लिमिटेड से महाप्रबंधक अभिमन्यु श्रीवास्तव, आदित्य होण्डा शोरुम के संचालक राजेश आहूजा, आरके मेमोरियल हास्पीटल की संचालक डॉ कृष्णा मौसिक, पगारिया स्टेशनरी के संचालक हेमंत पगारिया, समाजसेवी मनीष दीक्षित के संयुक्त तत्वावधान व बैतूल सांस्कृतिक सेवा समिति के संयोजन से प्रतिवर्ष मणिकर्णिका सम्मान समारोह का आयोजन डाटर्स डे पर किया जाता है।
अपनी चित्रकारी को पूर्वजों की धरोहर मानती है पदम श्री दुर्गा बाई
मध्य प्रदेश के डिंडोरी के छोटे से गांव बुरबासपुर की रहने वाली दुर्गा बाई व्योम कभी स्कूल नहीं गईं। लेकिन कला के दम पर उन्होंने देश में अपनी एक खास जगह बनाई है। दरअसल, दुर्गा बाई को आदिवासी कला को एक नई ऊंचाई देने के लिए वर्ष 2022 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। लेकिन उनकी यहां तक पहुंचने की राह काफी कठिनाइयों से भरी हुई थी। उनके चार भाई-बहन हैं और पिता चमरू सिंह की कमाई इतनी नहीं थी कि वे अपने बच्चों की ठीक से परवरिश कर सकें। इस वजह से दुर्गा कभी स्कूल की दहलीज तक नहीं पहुंच पाईं। 47 वर्षीया दुर्गा को बचपन से ही चित्रकारी से खास लगाव था और सिर्फ छह साल की उम्र से उन्होंने चित्रों को बनाना शुरू कर दिया। उनकी कलाओं में गोंड समुदाय से जुड़ी लोककथाओं की झलक देखने को मिलती है। दुर्गा इस कला को अपने पूर्वजों की धरोहर मानती हैं। उन्होंने अपनी दादी और माँ से दिग्ना कला सीखी, जिसमें शादियों और खेती से जुड़े त्योहारों में घर की दीवारों पर एक खास अंदाज में छवियां उकेरी जाती हैं। धीरे-धीरे यही शैली उनकी पहचान बन गई।जब वह 15 साल की थीं, तो उनकी शादी सुभाष व्योम से हो गई। सुभाष खुद मिट्टी और लकड़ी के मूर्तियां बनाने के लिए जाने जाते थे। 1996 में, उनके पति को भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में लकड़ी से आकृतियां बनाने का काम मिला था और वह पहली बार अपने गांव से बाहर आईं। यहां उनकी प्रतिभा को जनगढ़ सिंह श्याम और आनंद सिंह श्याम जैसे गोंड कलाकारों ने पहचाना और उन्हें गोंड चित्रकला के नए-नए कौशल सिखाए। इसी दौरान उनके बेटे की तबियत काफी खराब हो गई और उन्हें भोपाल में लंबे समय तक रुकना पड़ा। इसके बाद, दुर्गा ने अपनी काबिलियत पहचानी और यही रहने का मन बना लिया। एक बार तय करने के बाद वह भारत भवन से जुड़ीं और 1997 में उनकी पेंटिंग पहली बार प्रदर्शित हुई। लेकिन, भोपाल में रहना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने अपने तीन बच्चों की देखभाल के लिए झाड़ू-पोंछा का काम शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उनकी जिंदगी आगे बढऩे लगी और अपनी पेंटिंग से लोगों का दिल जीतना शुरू कर दिया। उन्हें इस साल पद्म श्री मिलने से पहले रानी दुर्गावती राष्ट्रीय अवार्ड और विक्रम अवार्ड जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
माता-पिता की सेवा के लिए मिलेट क्वीन लहरी ने नहीं की शादी
लहरी बाई डिंडोरी जिला के बजाग जनपद क्षेत्र अंतर्गत ग्राम सिलपिढी की रहने वाली हैं। वे बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही उन्हें उनके पूर्वजों से बेवर खेती करना और उसके बीज को सहेजने की जानकारी मिली है। बेवर बीज की खेेती से उत्पन्न होने वाले पौष्टिक अनाज को खाने से शरीर पुष्ट रहता है और आयु भी लंबी होती है। इसके चलते लहरी बाई ने अपने खेेत में धान और कोदो की फसल के साथ-साथ सामुदायिक अधिकार वाले जंगल की जमीन में पारंपरिक खेती में इस्तेमाल करने वाले बीजों को सहेजने का काम किया है। लहरी बाई ने अपने जीवन में मिलेट के संरक्षण के काम को प्राथमिकता दी है और इसकी झलक उनकी हर दिनचर्या में दिखती है. यहां तक कि उनके शरीर पर बने टैटू में भी मिलेट की झलक दिख जाती है। बैगा आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली लहरी बाई ने मोटे अनाजों की खेती और बीजों के संरक्षण में क्रांति ला दी, जिसके बाद उन्हें मिलेट क्वीन के नाम से जाना जाता है। लहरी बाई पर गर्व है, जिन्होंने श्री अन्न (मिलेट) के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है. उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे, प्रधानमंत्री मोदी ने लहरी बाई की तारीफ में ये बातें कही हैं। लहरीबाई मां चेती बाई की बहुत सेवा करती है। साथ ही खेती किसानी कर भरण पोषण के लिए अनाज इक_ा करती है। चेती बाई के लहरी बाई समेत 11 बच्चे थे। इनमें पांच बेटे और छह बेटियां थीं, लेकिन धीरे धीरे कर नौ बच्चों की मौत हो गई। अब लहरी और एक अन्य बेटी ही बची है जिसकी शादी हो चुकी है। अपने बूढ़े माता पिता की सेवा करने के लिए लहरी बाई ने शादी नहीं की है। 22 सितम्बर को पदम श्री दुर्गा बाई और मिलेट क्वीन लहरी बाई मणिकर्णिका सम्मान 2024 से नवाजी जाएगी।