चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाएं नववर्ष सदा, अंग्रेजी सभ्यता को करें अलविदा – राजेश मदान
ब्यूरो रिपोर्ट
यह अत्यंत दुःखद है कि भारतवासी अपने ही नूतन वर्ष को भूल गए और पश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण करके 1 जनवरी को नया वर्ष मनाते है।धीरे धीरे ये कुरीति गांव गांव में पैर पसार रही थी इसे ध्यान रखते हुए बैतूल के ग्राम मांडवा के ग्रामीणों और साधकों द्वारा तुलसी पूजन दिवस और व्यसन मुक्ति कार्यक्रम आयोजित किया गया। ग्रामीणों द्वारा सर्वप्रथम तुलसी जी का सामूहिक पूजन किया गया जिसमें सैकड़ों लोगों ने शामिल होकर व्यसन मुक्त होने और घर घर तुलसी पौधे रोपने का संकल्प लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री योग वेदांत सेवा समिति बैतूल के संरक्षक एवं समाजसेवी राजेश मदान ने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति में 31 दिसंबर की आधी रात को नव वर्ष का स्वागत शराब और मांस के सेवन और अश्लील गीतों के साथ शोरगुल करके मनाया जाता है। जिससे हत्या, आत्महत्या और एक्सीडेंट आदि घटनाएं ज्यादा होती हैं। वैसे भी यह हमारी दिव्य सनातन परंपराओं का हिस्सा नहीं है। इसीलिए संत श्री आशारामजी बापू ने 25 दिसम्बर 2014 से तुलसी पूजन दिवस की शुरुआत की जो अब विश्वव्यापी हो चुका है।
अंग्रेजों का यह नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं, अपना यह त्यौहार नहीं
यह तो अपनी रीत नहीं।
समृद्ध विरासत के धनिकों को
चाहिए कोई सभ्यता उधार नही।
सृष्टि का जिस दिन निर्माण हुआ उस दिन चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा थी।हिंदू धर्म में इसी दिन नूतन वर्ष मनाया जाता रहा है। किंतु वर्षों तक अंग्रेजों की गुलामी और पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण के कारण कई लोग अंग्रेजों का ही नूतन वर्ष मनाने लगे है जबकि हर हिन्दू को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, गुडी पाड़वा को ही नव वर्ष मनाकर अंग्रेजी सभ्यता को भूल जाना चाहिए और 1 जनवरी को सिर्फ कैलेंडर बदलें अपनी संस्कृति नहीं।
कार्यक्रम में ग्राम के 107 वर्षीय वयोवृद्ध गाजरूजी बारस्कर ने भी ग्रामीणों के साथ तुलसी पूजन करके तुलसी का महत्व बताया।
पूर्व सरपंच किशोरी लाल झरबडे ने सभी का आभार व्यक्त किया।आयोजित कार्यक्रम में पूर्व सरपंच साधक किशोरी लाल झरबडे के साथ पिंटू बारस्कर, पंडित बारस्कर, प्रगति बारस्कर, बाबूलाल नवडे, बबलू धुर्वे, भीलू धुर्वे, विशाल मरकाम, गोधन धुर्वे, सविता बारस्कर, प्रवीण बारस्कर, श्रवण धुर्वे, शंकर परपाची, सरस्वती बारस्कर, धनराज बारस्कर, मोहित बारस्कर सहित सैकड़ों ग्रामीण और सक्रिय साधकगण शामिल थे।