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अवैध रेत उत्खनन का मामला -दूरी पर मौन हुए वन विभाग के जांच अधिकारी

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भारती भूमरकर 

हालही में सारनी के पास मौजूद लोनिया गांव से लगे बंदरिया घाट पर बहने वाली तवा नदी पर बड़े पैमाने पर रेत के अवैध उत्खनन का मामला सामने आया था। जिसपर पर्यावरणविद् आदिल खान के माध्यम से वन विभाग को शिकायत भेजी गई थी और बताया गया था कि तवा नदी वन क्षेत्र से लगकर बहती है एवं सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर से 237 मीटर दूरी पर अवैध उत्खनन किया जा रहा है। जबकि वन क्षेत्र से 250 मीटर एवं टाइगर कॉरिडोर से 1 किलोमीटर के दायरे में उत्खनन नियमानुसार प्रतिबंधित रहता है।

पर्यावरणविद् आदिल खान

शिकायत मिलने के बाद वन विभाग का जांच दल बुधवार को सारनी पहुंचा एवं आदिल को साथ लेकर मौका स्थल का निरीक्षण किया गया। जांच दल में वन परिक्षेत्र अधिकारी बैतूल विनोद जाखड़ (भ.व.स) एवं शाहपुर एसडीओ उत्तम सिंह शामिल थे। आदिल ने बताया कि मौका स्थल पर जांच अधिकारियों के माध्यम से अवैध उत्खनन की पुष्टि की गई परंतु वन क्षेत्र और टाइगर कॉरिडोर से दूरी पर अधिकारी पूरे समय बचते हुए नज़र आए। जब एक जांच अधिकारी द्वारा वन परिक्षेत्र सारनी से दिए गए सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर के नक्शे से अवैध उत्खनन क्षेत्र की दूरी मोबाइल में मेप के माध्यम से नापी गई तो दूरी मात्र 163 मीटर निकली जो आदिल के द्वारा बताई गई दूरी से भी कम थी। इसके बाद अधिकारी के माध्यम से दूरी को पंचनामे में लिखने से ही मना कर दिया गया व वन परिक्षेत्र सारनी से दिए गए टाइगर कॉरिडोर के बिन्दुओं को भी मानने से मना कर दिया, जांच उपरांत अधिकारियों के माध्यम से साधारण पंचनामा बनाया गया।

जिसके बाद मामला तब गरमा गया जब आदिल ने पंचनामे पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, फिर अधिकारियों के माध्यम से दबाव बनाते हुए हस्ताक्षर करने कहा गया परन्तु आदिल ने दो टूक शब्दों में कहा की पहले आप लिखे की सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर के दस्तावेजों के आधार पर दूरी वर्णित की जाएगी। जिसके बाद अधिकारियों ने दूरी बाद में वर्णित करने का उल्लेख किया। वहीं जांच के समय रेत के अवैध उत्खनन वाले क्षेत्र में प्रवासी व स्थानीय जलीय पक्षी जैसे रड्डी शेलडक, स्टीलट, रिवर लेपविंग, रेड वेटल्ड लेपविंग इत्यादि दिखाई दिए ।

बिना टाइगर कॉरिडोर के दस्तावेजों के जांच करने पहुंचे अधिकारी
इस पूरी जांच पर सवाल उठाते हुए आदिल ने बताया की उन्हें फोन के माध्यम से जांच में आने की सूचना दी गई थी जबकि वन विभाग के माध्यम से पत्र जारी किया जाना चाहिए था। एवं जांच अधिकारी पूरे समय मामले में उन्हें गुमराह करने का प्रयास करते रहे और दूरी के आधार पर कार्रवाई की बात से भी बचते नज़र आएं। शिकायत सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर से दूरी के आधार पर की गई थी परंतु अधिकारियों का कहना था की उनके पास टाइगर कॉरिडोर के पेपर ही नहीं है, ऐसे में पूरी जांच ही अब सवालों के घेरे में आ गई है और बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि बैतूल जिले से सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर का बहुत बड़ा हिस्सा निकलता है फिर ऐसा कैसे संभव है की बैतूल वन वृत्त में सतपुड़ा मेलघाट टाइगर कॉरिडोर से संबंधित दस्तावेज नहीं मौजूद हो।

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